आसमान मे बदळी है छाई ,
पौष की रात मावठ है आई ।
खो गया ओट में चाँद,
सो गये तारे पी के भाँग।
धरा ने ओढी चादर पीली,
ओस से जमीं है सीली ।
अम्बर ने बिजली चमकाई ,
चने में फूटी कोपल मुरझाई
बादलों ने है अर्क को छुपाया ,
शीत से अर्क ने पता गिराया ।
गेहूँ की बाली है लहराई ,
आज रात मावठ है आई ।
पौष की रात मावठ है आई ।
खो गया ओट में चाँद,
सो गये तारे पी के भाँग।
धरा ने ओढी चादर पीली,
ओस से जमीं है सीली ।
अम्बर ने बिजली चमकाई ,
चने में फूटी कोपल मुरझाई
बादलों ने है अर्क को छुपाया ,
शीत से अर्क ने पता गिराया ।
गेहूँ की बाली है लहराई ,
आज रात मावठ है आई ।