लिखू मै इक गीत ऋतु बसंत का
सरसो के फूल गुलाब की गन्ध का ।
होठो पर अब आने दो मुस्कान्,
जाडे. से अब तक था बदन श्मशान्।
अंगों मे खिलने दो टेसू के फूल,
सांसों तक बहने दो सकून ।
लिखू मै इक गीत ऋतु बसंत का
तितली रंग सी उड्ती पतंग का ।
गेहूँ के पौधे मे बाळी निकलने लगी,
ठूँठ हुए पेडो में पतियाँ फूटने लगी ।
हलथरों के भी बहार आने लगी ,
जोहड. में भी बतख नहाने लगी ।
लिखू मै इक गीत ऋतु बसंत का
अपनों के संग बहती उमंग का ।