बुधवार, 6 जून 2012

छाया चित्रों का संग्रह



मैं दुर्योधन हूँ

मैं दुर्योधन हूँ
मैं द्वापर में था, आज भी हूँ
मैं मरा नहीं, जिंदा हूँ
मेरी नगरी इंद्रप्रसथ आज भी
यमुना के तीर पर खड़ी है |

महाभारतकाल में हम 100 भाई थे
आज हमारी संख्या 500+ हो गई है||

उस जमाने में हम अभिमंत्रित कलश से पैदा हए थे
आज मतपेट्टी रूपी कलश से पैदा हो रहे हैं

तब मेरा साम्राज्य केवल इंद्रप्रस्थ था
आज पूरा भारतवर्ष मेरे अधीन है

मेरे दु:शासन आदि भाई द्रोपदियों का चीर हरण करने
में मस्त है|
मेरे मामा शकुनी खजाना भरने मे व्यस्त हैं ||

मौसम की करवट

गर्मी के मौसम ने ली अंगड़ाई |
रात की अंधेरी ने आंख रड़काई ||

जलदों से फुहारों की रिमझिम |
हुई हवा में आज कुछ सिमसिम ||

मस्तानी बयार बहे पुरवाई |
ठंडी-2 समीर तन को भाई ||