बुधवार, 29 अप्रैल 2020

राम केवट प्रसंग

✍क्षीर सागर में भगवान विष्णु शेष शैया पर विश्राम कर रहे हैं और लक्ष्मीजी उनके पैर दबा रही हैं । विष्णुजी के एक पैर  का अंगूठा शैया के बाहर आ गया और लहरें उससे खिलवाड़ करने लगीं ।
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✍क्षीरसागर के एक कछुवे ने इस दृश्य को देखा और मन में यह विचार कर कि मैं यदि भगवान विष्णु के अंगूठे को अपनी जिव्ह्या से स्पर्श कर लूँ तो मेरा मोक्ष हो जायेगा,यह सोच कर उनकी ओर बढ़ा ।
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✍उसे भगवान विष्णु की ओर आते हुये शेषनाग ने देख लिया और कछुवे को भगाने के लिये जोर से फुँफकारा । फुँफकार सुन कर कछुवा भाग कर छुप गया ।
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✍कुछ समय पश्चात् जब शेषजी का ध्यान हट गया तो उसने पुनः प्रयास किया । इस बार लक्ष्मीदेवी की दृष्टि उस पर पड़ गई और उन्होंने उसे भगा दिया ।
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✍इस प्रकार उस कछुवे ने अनेकों प्रयास किये पर शेष नाग और लक्ष्मी माता के कारण उसे  सफलता नहीं मिली । यहाँ तक कि सृष्टि की रचना हो गई और सत्युग बीत जाने के बाद त्रेता युग आ गया ।
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✍इस मध्य उस कछुवे ने अनेक बार अनेक योनियों में जन्म लिया और प्रत्येक जन्म में भगवान की प्राप्ति का प्रयत्न करता रहा । अपने तपोबल से उसने दिव्य दृष्टि को प्राप्त कर लिया था ।
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✍कछुवे को पता था कि त्रेता युग में वही क्षीरसागर में शयन करने वाले विष्णु राम का और वही शेषनाग लक्ष्मण का व वही लक्ष्मीदेवी सीता के रूप में अवतरित होंगे तथा वनवास के समय उन्हें गंगा पार उतरने की आवश्यकता पड़ेगी । इसीलिये वह भी केवट बन कर वहाँ आ गया था ।
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✍✍एक युग से भी अधिक काल तक तपस्या करने के कारण उसने प्रभु के सारे मर्म जान लिये थे, इसीलिये उसने रामजी से कहा था कि मैं आपका मर्म जानता हूँ ।
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✍संत श्री तुलसीदासजी भी इस तथ्य को जानते थे, इसलिये अपनी चौपाई में केवट के मुख से कहलवाया है कि
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“कहहि तुम्हार मरमु मैं जाना”।
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✍केवल इतना ही नहीं, इस बार केवट इस अवसर को किसी भी प्रकार हाथ से जाने नहीं देना चाहता था । उसे याद था कि शेषनाग क्रोध कर के फुँफकारते थे और मैं डर जाता था ।
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✍अबकी बार वे लक्ष्मण के रूप में मुझ पर अपना बाण भी चला सकते हैं, पर इस बार उसने अपने भय को त्याग दिया था, लक्ष्मण के तीर से मर जाना उसे स्वीकार था पर इस अवसर को खो देना नहीं ।
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✍✍इसीलिये विद्वान संत श्री तुलसीदासजी ने लिखा है -
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✍( हे नाथ ! मैं चरणकमल धोकर आप लोगों को नाव पर चढ़ा लूँगा; मैं आपसे उतराई भी नहीं चाहता । हे राम ! मुझे आपकी दुहाई और दशरथजी की सौगंध है, मैं आपसे बिल्कुल सच कह रहा हूँ । भले ही लक्ष्मणजी मुझे तीर मार दें, पर जब तक मैं आपके पैरों को पखार नहीं लूँगा, तब तक हे तुलसीदास के नाथ ! हे कृपालु ! मैं पार नहीं उतारूँगा । )
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✍तुलसीदासजी आगे और लिखते हैं -
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✍केवट के प्रेम से लपेटे हुये अटपटे वचन को सुन कर करुणा के धाम श्री रामचन्द्रजी जानकी और लक्ष्मण की ओर देख कर हँसे । जैसे वे उनसे पूछ रहे हैं- कहो, अब क्या करूँ, उस समय तो केवल अँगूठे को स्पर्श करना चाहता था और तुम लोग इसे भगा देते थे पर अब तो यह दोनों पैर माँग रहा है !
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✍केवट बहुत चतुर था । उसने अपने साथ ही साथ अपने परिवार और पितरों को भी मोक्ष प्रदान करवा दिया । तुलसीदासजी लिखते हैं -.

✍चरणों को धोकर पूरे परिवार सहित उस चरणामृत का पान करके उसी जल से पितरों का तर्पण करके अपने पितरों को भवसागर से पार कर फिर आनन्दपूर्वक प्रभु श्री रामचन्द्र को गंगा के पार ले गया ।
उस समय का प्रसंग है ... जब केवट भगवान् के चरण धो रहे है ।
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✍बड़ा प्यारा दृश्य है, भगवान् का एक पैर धोकर उसे निकलकर कठौती से बाहर रख देते है, और जब दूसरा धोने लगते है,
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✍तो पहला वाला पैर गीला होने से जमीन पर रखने से धूल भरा हो जाता है,
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✍केवट दूसरा पैर बाहर रखते है, फिर पहले वाले को धोते है, एक-एक पैर को सात-सात बार धोते है ।
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✍फिर ये सब देखकर कहते है,
प्रभु, एक पैर कठौती में रखिये दूसरा मेरे हाथ पर रखिये, ताकि मैला ना हो ।
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✍जब भगवान् ऐसा ही करते है । तो जरा सोचिये ... क्या स्थिति होगी , यदि एक पैर कठौती में है और दूसरा केवट के हाथों में,
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✍भगवान् दोनों पैरों से खड़े नहीं हो पाते बोले - केवट मैं गिर जाऊँगा ?
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✍केवट बोला - चिंता क्यों करते हो भगवन्  !.
दोनों हाथों को मेरे सिर पर रख कर खड़े हो जाईये, फिर नहीं गिरेंगे ,
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✍जैसे कोई छोटा बच्चा है जब उसकी माँ उसे स्नान कराती है तो बच्चा माँ के सिर पर हाथ रखकर खड़ा हो जाता है, भगवान् भी आज वैसे ही खड़े है ।
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✍भगवान् केवट से बोले - भईया केवट ! मेरे अंदर का अभिमान आज टूट गया...
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✍केवट बोला - प्रभु ! क्या कह रहे है ?.
भगवान् बोले - सच कह रहा हूँ केवट, अभी तक मेरे अंदर अभिमान था, कि .... मैं भक्तों को गिरने से बचाता हूँ पर..
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✍आज पता चला कि, भक्त भी भगवान् को गिरने से बचाता है ।.जै राम जी की।।🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

ग्रहों व भावों के अनुसार ही विभिन्न रोग प्राप्त होते हैं।

1. सूर्य: पूरा शरीर, चेहरा दायां भाग, ज्वर, रक्तचाप, नेत्र रोग (दायां), पागलपन, हड्डी टूटना, मुंह से झाग आना, लकवा। सूर्य की महादशा, अंतर्दशा में उपरोक्त रोग की संभावना प्रबल रहती है।
2. चंद्र: हृदय, फेफड़े, चेहरा बायां भाग, हृदय व फेफड़ों के रोग, नेत्र रोग बायां, मानसिक रोग, पक्षाघात, मिर्गी, अनिद्रा, पागलपन, स्तन रोग, छाती रोग, हारमोन्स के रोग।
3. मंगल: जिगर, होंठ, जिगर व होंठ की बीमारियां, हैजा, पित्त व पेट की बीमारियां, रक्त चाप उच्च व निम्न, रक्त विकार, नासूर, फोड़ा, सिरदर्द, मज्जा रोग, मंगल की दशा में रोग।
4. बुध: दांत,जीभ, दिमाग, विवेक, स्नायु तंत्र, मानसिक, स्नायु, जुकाम, दांत के रोग, विवेक में कमी, हकलाहट, मंद बुद्धि रोग, नपुंसकता। बुध की दशा में रोग।
5. गुरु: नाक, गर्दन, सांस व फेफड़े के रोग, मोटापा, चर्बी रोग, मधुमेह गुरु की दशा में रोग।
6. शुक्र: गाल, स्वर तंत्र, चर्म रोग, खुजली, गुप्त रोग, स्वर विकार, किडनी रोग।
7. शनि: भौहें, बाल, हड्डी, नस, नेत्र, पैर, नेत्र ज्योति रोग, दमा, खांसी, कफ, नसो के रोग, बाल उड़ना, रूसी, हड्डीटूटना नाभि के नीचे भागों में दर्द, नपुंसकता।
8. राहु: मस्तिष्क के कंपन, सिर, ठुड्डी, मानसिक रोग, ऊपरीबाधा, पागलपन, लकवा, प्लेग, बुखार, मोटापा, चर्बी रोग, तंत्र-मंत्र, भूत-प्रेत प्रकोप।
9. केतु: धड़, घुटने, टखने, पंजे, कान, रीढ़ की हड्डी, इन अंगों में रोग, यौन रोग, अंडकोष के रोग, हाथ-पांव में दर्द, गलगंड, मूत्र रोग, फोड़े फुंसी, नपुंसकता।

उपर्युक्त ग्रहों की विभिन्न दशाओं महा, अंतर, प्रत्यंतर दशा व शनि की साढ़ेसाती,ढईया, गोचर आदि में संबंधित रोग होंगे। हां कालपुरूष का मेडिकल साइंस के उपरोक्त आधार पर प्रयोग करने के पश्चात् यह आसानी से जाना जा सकता है कि जातक को कौन सा रोग होगा।
साधारणतया रोग का विचार काल पुरूष की कुंडली के छठे भाव से किया जा सकता है।
लग्न- लग्नेश, राशि-राशीश, चंद्रमा, षष्ठ-षष्ठेश, एकादश भाव-एकादशेश के निर्बल नीच, अस्त, वक्री आदि होकर त्रिक भाव 6, 8, 12 में स्थित होने से जातक को ग्रहों व भावोंके अनुसार ग्रहों की विभिन्न दशाओं महा, अंतर, प्रत्यंतर दशा, गोचर, शनि की साढ़ेसाती, ढईया में ग्रहों व भावों के अनुसार ही विभिन्न रोग प्राप्त होते हैं। साथ ही इन पर पाप प्रभाव हो तो इन पाप प्रभाव के ग्रहों की दशा में रोग और भी अधिक उग्र हो जाते है।

राहु का महत्त्व

वैदिक ज्योतिष में राहु का महत्त्व
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भारतीय वैदिक ज्योतष में राहु को मायावी ग्रह के नाम से भी जाना जाता है तथा मुख्य रूप से राहु मायावी विद्याओं तथा मायावी शक्तियों के ही कारक माने जाते हैं। इसके अतिरिक्त राहु को बिना सोचे समझे मन में आ जाने वाले विचार, बिना सोचे समझे अचानक मुंह से निकल जाने वाली बात, क्षणों में ही भारी लाभ अथवा हानि देने वाले क्षेत्रों जैसे जुआ, लाटरी, घुड़दौड़ पर पैसा लगाना, इंटरनैट तथा इसके माध्यम से होने वाले व्यवसायों तथा ऐसे ही कई अन्य व्यवसायों तथा क्षेत्रों का कारक माना जाता है। नवग्रहों में यह अकेला ही ऐसा ग्रह है जो सबसे कम समय में किसी व्यक्ति को करोड़पति, अरबपति या फिर कंगाल भी बना सकता है तथा इसी लिए इस ग्रह को मायावी ग्रह के नाम से जाना जाता है। अगर आज के युग की बात करें तो इंटरनैट पर कुछ वर्ष पहले साधारण सी दिखने वाली कुछ वैबसाइटें चलाने वाले लोगों को पता भी नहीं था की कुछ ही समय में उन वैबसाइटों के चलते वे करोड़पति अथवा अरबपति बन जाएंगे। किसी लाटरी के माध्यम से अथवा टैलीविज़न पर होने वाले किसी गेम शो के माध्यम से रातों रात कुछ लोगों को धनवान बना देने का काम भी इसी ग्रह का है।

राहु की अन्य कारक वस्तुओं में लाटरी तथा शेयर बाजार जैसे क्षेत्र, वैज्ञानिक तथा विशेष रूप से वे वैज्ञानिक जो अचानक ही अपने किसी नए अविष्कार के माध्यम से दुनिया भर में प्रसिद्ध हो जाते हैं, इंटरनैट से जुड़े हुए व्यवसाय तथा इन्हें करने वाले लोग, साफ्टवेयर क्षेत्र तथा इससे जुड़े लोग, तम्बाकू का व्यापार तथा सेवन, राजनयिक, राजनेता, राजदूत, विमान चालक, विदेशों में जाकर बसने वाले लोग, अजनबी, चोर, कैदी, नशे का व्यापार करने वाले लोग, सफाई कर्मचारी, कंप्यूटर प्रोग्रामर, ठग, धोखेबाज व्यक्ति, पंछी तथा विशेष रूप से कौवा, ससुराल पक्ष के लोग तथा विशेष रूप से ससुर तथा साला, बिजली का काम करने वाले लोग, कूड़ा-कचरा उठाने वाले लोग, एक आंख से ही देख पाने वाले लोग तथा ऐसे ही अन्य कई प्रकार के क्षेत्र तथा लोग आते हैं।

राहु का विशेष प्रभाव जातक को परा शक्तियों का ज्ञाता भी बना सकता है तथा किसी प्रकार का चमत्कारी अथवा जादूगर भी बना सकता है। दुनिया में विभिन्न मंचों पर अपने जादू के करतब दिखा कर लोगों को हैरान कर देने वाले जादूगर आम तौर पर इसी ग्रह के विशेष प्रभाव में होते हैं तथा काला जादू करने वाले लोग भी राहु के विशेष प्रभाव में ही होते हैं। राहु के प्रबल प्रभाव वाले जातक बातचीत अथवा बहस में आम तौर पर बुध के जातकों पर भी भारी पड़ जाते हैं तथा बहस के बीच में ही कुछ ऐसी बातें अथवा नए तथ्य सामने ले आते हैं जिससे इनका पलड़ा एकदम से भारी हो जाता है, हालांकि अधिकतर मामलों में बाद में इन्हें खुद भी आश्चर्य होता है कि ऐन मौके पर इन्हें उपयुक्त बात सूझ कैसे गई। ऐसा आम तौर पर राहु महाराज की माया के कारण होता है कि जातक मौका आने पर ऐसी बातें भी कह देता है जो खुद उसकी अपनी जानकारी में नहीं होतीं तथा अचानक ही उसके मुंह से निकल जातीं हैं।

राहु एक छाया ग्रह हैं तथा मनुष्य के शरीर में राहु वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। ज्योतिष की गणनाओं के लिए ज्योतिषियों का एक वर्ग इन्हें पुरुष ग्रह मानता है जबकि ज्योतिषियों का एक अन्य वर्ग इन्हें स्त्री ग्रह मानता है। कुंडली में शुभ राहु का प्रबल प्रभाव कुंडली धारक को विदेशों की सैर करवा सकता है तथा उसे एक या एक से अधिक विदेशी भाषाओं का ज्ञान भी करवा सकता है। कुंडली में राहु के बलहीन होने से अथवा किसी बुरे ग्रह के प्रभाव में होने से जातक को अपने जीवन में कई बार अचानक आने वाली हानियों तथा समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे जातक बहुत सा धन कमा लेने के बावजूद भी उसे संचित करने में अथवा उस धन से संपत्ति बना लेने में आम तौर पर सक्षम नहीं हो पाते क्योंकि उनका कमाया धन साथ ही साथ खर्च होता रहता है। राहु पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव कुंडली धारक को मानसिक रोगों, अनिद्रा के रोग, बुरे सपने आने की समस्या, त्वचा के रोगों तथा ऐसे ही अन्य कई बिमारियों से पीड़ित कर सकता है।

राहू का द्वादश भाव मे फल ओर उसके उपाय
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राहू का पहले भाव में फल
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पहला घर मंगल और सूर्य से प्रभावित होता है, यह घर किसी सिंहासन की तरह होता है। पहले घर में बैठा ग्रह सभी ग्रहों का राजा माना जाता है। जातक अपनी योग्यता से बडा पद प्राप्त करेगा। उसे सरकार से भी अच्छे परिणाम मिलेंगे। इस घर में राहू उच्च के सूर्य के समान परिणाम देगा। लेकिन सूर्य जिस भाव में बैठा है उस भाव के फल प्रभावित होंगे। यदि मंगल, शनि और केतू कमजोर हैं तो राहू बुरे परिणाम देगा अन्यथा यह पहले भाव में अच्छे परिणाम देगा। यदि राहू नीच का हो तो जातक को कभी भी ससुराल वालों से बिजली के उपकरण या नीले कपडे नहीं लेने चाहिए, अन्यथा उसके पुत्र पर बुरा प्रभाव पडता है। राहू के दुष्परिणाम 42 साल की उम्र तक मिलते हैं।

उपाय: (1) बहते पानी में 400 ग्राम सुरमा बहाएं।

(2) गले में चांदी पहनें।

 (3) 1:4 के अनुपात में जौ में दूध मिलाए और बहते पानी में बहाएं।

(4) बहते पानी में नारियल बहाएं।

राहू का दूसरे भाव में फल
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यदि दूसरे घर में राहू शुभ अवस्था में हो तो जातक पैसा एवं प्रतिष्ठा प्राप्त करता है और किसी राजा की तरह जीवन जीता है। जातक दीर्घायु होता है। दूसरा भाव बृहस्पति और शुक्र से प्रभावित होता है। यदि बृहस्पति शुभ हो तो जातक अपनी प्रारंभिक अवस्था में धन से युक्त व आराम भरी जिन्दगी जीता है। यदि राहू नीच का हो तो जातक गरीब होता है, उसका पारिवारिक जीवन खराब होता है। वह पेट के विकारों से परेशान होता है। जातक पैसे बचाने में असमर्थ होता है और उसकी मृत्यु किसी हथियार से होती है। उसके जीवन के दसवें, इक्कीसवें और बयालीसवें वर्ष में चोरी आदि माध्यमों से उसका धन खो जाता है।

उपाय: (1) चांदी की एक ठोस गोली अपनी जेब में रखें।

(2) बृहस्पति से सम्बंधित चीजें जैसे सोना, पीले कपड़े और केसर आदि उपयोग में लाएं।

(3) माँ के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध रखें।

(4) शादी के बाद ससुराल वालों से कोई बिजली का उपकरण न लें।

राहू का तीसरे भाव में फल
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यह राहु का पक्का घर है। तीसरा घर बुध और मंगल से प्रभावित होता है। यदि यहां राहू शुभ हो तो, बहुत धन दौलत वाला और दीर्घायु होता। वह एक निडर और वफादार दोस्त होता है। वह सपनों के माध्यम से भविष्य देख सकेगा। वह कभी नि:संतान नहीं होगा। वह शत्रुओं पर विजय पाने वाला होगा। वह कभी भी कर्जदार नहीं रहेगा। वह अपने पीछे सम्पत्ति छोड जाएगा। अपने जीवन के 22वें वर्ष में वह प्रगति करेगा। लेकिन अगर राहू तीसरे घर में अशुभ है तो उसके भाई और रिश्तेदार अपने पैसे बर्बाद करेंगे। वह किसी को पैसे उधार देगा तो वापस नहीं मिलेंगे। जातक में वाणी दोष होगा और वह नास्तिक होगा। यदि सूर्य और बुध भी राहू के साथ तीसरे घर में हों तो उसकी बहन अपनी उम्र के 22वें या 32वें साल में विधवा हो सकती है।

उपाय: (1) घर में कभी भी हाथीदांत या हाथीदांत की वस्तुएं न रखें।

(2) एक एक मुट्ठी सप्तधान्य सर से 11 बार उतार कर बहते जल में प्रवाहित करें।

 राहू का चौथे भाव में फल
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यह घर चंद्रमा का है जो कि राहू क शत्रु है। जब इस घर में रहु शुभ हो तो जातक बुद्धिमान, अमीर और अच्छी चीजों पर पैसे खर्च करने वाला होगा। तीर्थ यात्रा पर जाना जातक के लिए फायदेमंद होगा। यदि शुक्र भी शुभ हो तो शादी के बाद जातक के ससुराल वाले भी अमीर हो जाते हैं और जातक को उनसे भी लाभ मिलता है। यदि चंद्रमा उच्च का हो तो जातक बहुत अमीर हो जाता है और बुध से संबंधित कामों से बहुत लाभ कमाता है। यदि राहू नीच का या अशुभ हो और चंद्रमा कमजोर हो तो जातक गरीब होता है और जातक की मां परेशान होती है। कोयले का एकत्रीकरण, शौचालय फेरबदल, जमीन में तंदूर बनाना और छ्त में फेरबदल करना हानिकारक होगा।

उपाय: (1) चांदी पहनें।

(2) 400 ग्राम धनिया या बादाम दान करें अथवा दोनो को पानी में बहाएं।

राहू का पांचवें भाव में फल
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पांचवां घर सूर्य का होता है जो पुरुष संतान का संकेतक है। यदि राहू शुभ हो तो जातक अमीर, बुद्धिमान और स्वस्थ होता है। वह अच्छी आमदनी और अच्छी प्रगति का आनंद पाता है। जातक भक्त या दार्शनिक होता है। यहां स्थित नीच का राहू गर्भपात करवाता है। पुत्र के जन्म के बाद जातक की पत्नी बारह सालों तक बीमार रहती है। यदि बृहस्पति भी पांचवें भाव मेम स्थित हो तो जातक के पिता को कष्ट होगा।

उपाय: (1) अपने घर में चांदी से बना हाथी रखें।

(2) शराब, मांशाहार, अण्डे के सेवन और व्यभिचार से बचें।

(3) अपनी पत्नी से ही दो बार शादी करें।

 राहू का छठें भाव में फल
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इस घर बुध या केतु से प्रभावित होता है। राहू यहां उच्च का होता है और अच्छे परिणाम देता है। जातक सभी प्रकार की झंझटों या मुसीबतों के मुक्त होगा। जातक कपड़ों पर पैसा खर्च करेगा। जातक बुद्धिमान और विजेता होगा। जब राहु अशुभ हो तो वह अपने भाइयों या दोस्तों को नुकसान पहुंचाएगा। जब बुध या मंगल ग्रह बारहवें भाव में हों तो राहु बुरा परिणाम देता है। जातक विभिन्न बीमारियों या धनहानि से ग्रस्त होता है। किसी काम पर जाते समय छींक का होना जातक के लिए अशुभफलदायी होगा।

उपाय: (1) एक काला कुत्ता पालें।

(2) अपनी जेब में काला सुरमा रखें।

(3) भाइयों / बहनों को कभी नुकसान न पहुंचाएं।

 राहू का सातवें भाव में फल
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जातक अमीर होगा लेकिन पत्नी बामार होगी। वह अपने दुश्मनों पर विजयी होगा। उम्र के इक्कीस साल से पहले शादी का होना अशुभ होगा। जातक के सरकार के साथ अच्छे संबंध होंगे। लेकिन यदि जातक राहू से संबंधित व्यवसाय जैसे बिजली के उपकरणों के व्यापार से जुडेगा तो उसे नुकसान होगा। जातक सिर दर्द से पीड़ित होगा। यदि बुध शुक्र अथवा केतू ग्यारहवें भाव में हों तो राहू बहन, पत्नी या बेटे को नष्ट करेगा।

उपाय: (1) 21 साल की उम्र के पहले शादी न करें।

(2) नदी में छह नारियल और एक एक मुट्ठी सप्तधान्य सर से 11 बार उतार कर बहते जल में प्रवाहित करें।
प्रवाहित करे।

राहू का आठवें भाव में फल
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आठवें घर का संबध शनि और मंगल ग्रह से होता है। इसलिए इस भाव का राहू अशुभ फल देता है। जातक अदालती मामलों में बेकार में पैसे खर्च करता है।परिवारिक जीवन भी प्रतिकूलता से प्रभावित होता है। यदि मंगल ग्रह शुभ हो तथा पहले या आठवें घर में हो अथवा शुभ शनि आठवें घर में हो तो जातक बहुत अमीर होगा।

उपाय: (1) चांदी का एक चौकोर टुकड़ा पास रखें।

(2) सोते समय तकिये के नीचे सौंफ रखें।

(3) बिजली का काम या बिजली विभाग में काम न करें।

 राहू का नौवें भाव में फल
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नौवां घर बृहस्पति से प्रभावित होता है। यदि जातक का अपने भाइयों और बहनों के साथ अच्छा संबंध है तो यह यह फायदेमंद होगा, अन्यथा जातक पर प्रतिकूल प्रभाव पडेगा। यदि जातक धार्मिक स्वभाव का नहीं है तो जातक की संतान जातक के लिए बेकार रहेगी। शनि से संबम्धित व्यापार फायदेमंद रहेगा। यदि बृहस्पति पांचवें या ग्यारहवें घर में हो तो यह निष्प्रभावी होगा। यदि राहू अशुभ होकर नौवें भाव में हो तो पुत्र प्राप्ति की संभावनाएं कम रहती हैं, खासकर तब और जब जातक अपने किसी सगे रिश्तेदार कि खिलाफ कोई अदालती मामला दायर करता है। यदि राहू नौवें भाव में हो और पहला भाव खाली हो तो जातक का स्वास्थ्य पीडित होता है और जातक उम्र में बडे लोगों के द्वारा अपमानित होता है और मानसिक रूप से प्रताडित होता है।

उपाय: (1) प्रतिदिन केसर का तिलक लगाएं।

(2) सोना पहनें।

(3) कुत्ता न पालें लेकिन समस्या होने पर कुत्ते को भोजन कराएं। कुत्ता रखने से संतान रक्षा होगी।

(4) ससुराल वालों से अच्छे संबंध बनाकर रखें।

 राहू का दसवें भाव में फल
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सिर के ऊपर कुछ न पहनना दसम भाव में स्थित दुर्बल राहु का प्रभाव देता है। राहू का अच्छा या बुरा परिणाम शनि की स्थिति पर निर्भर करेगा। यदि शनि शुभ है तो जातक बहादुर, दीर्घायु, और अमीर होता है तथा उसे सभी प्रकार से सम्मान मिलता है। यदि दसवें भाव में राहू चन्द्रमा के साथ हो तो यह राज योग बनाता है। जातक अपने पिता के लिए भाग्यशाली होता है। यदि यहां पर राहू अशुभ हो तो जातक की मां पर बुरा असर पडता है और जातक का स्वास्थ्य भी खराब होगा। यदि चंद्रमा चतुर्थ भाव में अकेला हो तो जातक की आंखों पर बुरा प्रभाव पडेगा। जातक सिर दर्द से पीड़ित होगा और उसे किसी काले व्यक्ति के द्वारा धन हानि होगी।

उपाय: (1) नीली या काली टोपी पहनें।

(2) सिर को ढक कर रखें।

(3) किसी मंदिर में 4 किलो या 400 ग्राम खांड चढाएं अथवा पानी में बहाएं।

(4) अंधे लोगों को खाना खिलाएं।

राहू का ग्यारहवें भाव में फल
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ग्यारहवां घर शनि और बृहस्पति दोनो के प्रभाव में होता है। जब तक जातक के पिता जीवित हैं तब तक जातक अमीर होगा। वैकल्पिक रूप से, बृहस्पति की वस्तुएं रखना सहयोगी सिद्ध होंगी। जातक के दोस्त अच्छे नहीं होंगे। उसे मतलबी लोगों से पैसा मिलेगा। पिता की मृत्यु के बाद जातक को गले में सोना पहनना चाहिए। यदि राहू के साथ नीच का मंगल ग्यारहवें भाव में हो तो जातक के जन्म के समय घर में सारी चीजें होंगी लेकिन धीरे धीरे करके सारी चीजें बरबाद होनें लगेंगी। यदि ग्यारहवें भाव में अशुभ राहू हो तो जातक के अपने पिता सम्बंध ठीक नहीं होंगें यहां तक की जातक उन्हें मार भी सकता है। दूसरे भाव में स्थित ग्रह शत्रु की तरह कार्य करेंगे। यदि बृहस्पति या शनि तीसरे या ग्यारहवें भाव में हों तो शरीर में लोहा पहनें और चांदी की गिलास में पानी पिएं। पांचवें भाव में स्थित केतू बुरे परिणाम देगा। कान, रीढ़, मूत्र से संबंधित समस्याएं या रोग हो सकते हैं। केतु से संबंधित व्यापार में नुकसान हो सकता है।

उपाय: (1) लोहा पहनें और पीने के पानी के लिए चांदी का गिलास का प्रयोग करें।

(2) कभी भी कोई बिजली का उपकरण उपहार के रूप में न लें।

(3) नीलम, हाथीदांत या हाथी का खिलौने से दूर रहें।

राहू का बारहवें भाव में फल
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बारहवां घर बृहस्पति से संबंधित होता है। यह शयन सुख का घर होता है। यहां स्थित राहु मानसिक परेशानियां और अनिद्रा देता है। यह बहनों और बेटियों पर अत्यधिक व्यय भी करवाता है। यदि राहु शत्रु ग्रहों के साथ हो तो आप कितनी भी मेहनत कर लें आपके खर्चे आपकी आमदनी से अधिक ही रहेंगे। यह झूठे आरोप भी लगवाता है। जातक आत्महत्या की चरमसीमा तक जा सकता है। जातक मानसिक चिंताओं से घिरा रहता है। झूठ बोलना, दूसरों को धोखा आदि देना राहु को और भी हानिकर बानाता है। किसी भी नए काम की शुरुआत में अशुभ परिणाम मिलते हैं। चोरी, बामारी और झूठे आरोपों के लगने का भय रहता है। यदि यहां राहू के साथ मंगल भी हो तो अच्छे परिणाम मिलते हैं।

उपाय: (1) रसोई में बैठ कर ही भोजन करें।
(2) रात में अच्छी नींद के लिए तकिये के नीचे सौंफ और खांड रखें।

राहु कब होता है खराब ?
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राहू कूटनीति का सबसे बड़ा ग्रह है राहू संघर्ष के बाद सफलता दिलाता है यह कई महापुरुषों की कुंडलियो से स्पष्ट है राहू का 12 वे घर में बैठना बड़ा अशुभ होता है क्योकि यह जेल और बंधन का मालिक है 12 वे घर में बैठकर अपनी दशा, अंतरदशा में या तो पागलखाने में या अस्पताल और जेल में जरूर भेजता है। किसी भी कुंडली में राहू जिस घर में बैठता है 19 वे वर्ष में उसका फल दे कर 20 वे वर्ष में नष्ट कर देता है राहू की महादशा 18 वर्ष की होती है। राहू चन्द्र जब भी एक साथ किसी भी भाव में बैठे हुए हो तो चिंता का योग बनाते है।

राहू की अपनी कोई राशी नहीं है वह जिस ग्रह के साथ बैठता है वहा तीन कार्य करता है।
1👉 उस ग्रह की सारी शक्ति समाप्त कर देता है।
2👉 उसकी शक्ति स्वयं ले लेता है।
3👉 उस भाव में अत्यधिक संघर्ष के बाद सफलता देता है।

कुंडली मे राहु के अशुभ होने के कुछ योग
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1👉 प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, सप्तम, नवम, दशम तथा एकादश भाव में राहु की स्थिति शुभ नहीं मानी जाती हैं। परन्तु कुछ विद्वान तीसरे, छठे तथा ग्यारहवें भाव राहु की स्थिति को शुभ भी मानते हैं।

2👉 नीच अथवा धनु राशि का राहु, अशुभ फल देता हैं।

3👉 यदि राहु शुभ भावी का स्वामी होकर अपने भाव से छठे अथवा आठवें स्थान पर बैठा हो तो अशुभ फल देता हैं।

4👉 यदि राहु श्रेष्ट भाव का स्वामी होकर सूर्य के साथ बैठा हो अथवा शुक्र व बुध के साथ बैठा हो तो अशुभ फल देता हैं।

5👉 सिंह राशिस्थ अथवा सूर्य से दृष्ट राहु अशुभ होता हैं।

6👉 जन्म कुण्डली में राहु की अशुभ स्थिति हो तो राहु कृत पीड़ा के निवारणार्थ राहु-शांति के उपाय अवश्य कराने चाहिए।

राहु के कारण व्यक्ति को निम्नांकित परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं।
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1👉 नौकरी व व्यवसाय में बाधा।
2👉 मानसिक तनाव व अशांति।
3👉 रात को नींद न आना।
4👉 परीक्षा में असफलता प्राप्त होना।
5👉 कार्य में मन न लगना।
6👉 बेबुनियाद ख्यालों में उलझे रहना।
7👉 अचानक धन का अधिक खर्च। होना या धन रूक-रूक कर प्राप्त होना।
8👉 बिना सोचे समझे कार्य करना।
9👉 दुर्जनों व दुष्टों से मित्रता।
10👉 पति-पत्नी में तनाव व नीच स्त्रियों से सम्बन्ध होना।
11👉 पेट व आंतडि़यों के रोग होना।
12👉 बनते कार्यो में रूकावट होना।
13👉 पुलिस व कानूनी परेशानियां तथा सरकार की तरफ से दण्ड।
14👉 घर व भौतिक सुखों की कमी।
15👉 धन, चरित्र, स्वास्थ्य की तरफ से लापरवाही।
16👉 ब्लैक मैजिक टोना टोटका के प्रभाव में आना।
17👉 बनावटी बातों वाले धोखेबाज लाईफ पार्टनर देना।
18👉 गुप्त विद्याओं में रूची दिखाकर गल्त राह पर चलाना।
19👉 पीठ पीछे जड़े काटने वाले मित्र देना।
20👉 पति पत्नी में संदेहास्पद स्थिती बनाकर तलाक जैसे योग बनाना।
21👉 छोटी उम्र में वीर्य को समाप्त कर यौन रोग देना।

किन कारणों से राहु अशुभ फल देता है.?
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1👉 यदि कोई व्यक्ति अपने गुरु या फिर अपने धर्म का अपमान करता है, तो उस व्यक्ति का राहू ग्रह अवश्य बुरा फल देता है।

2👉  यदि कोई व्यक्ति शराब का सेवन नियमित करता है, या फिर पराई स्त्री के साथ सम्बन्ध बनाने की इच्छा रखता है, तो उसका राहू ग्रह अवश्य बुरा फल देता है।

3👉 यदि कोई व्यक्ति ब्याज वाले पैसों का प्रयोग घर में करता है तो, उस व्यक्ति का राहू ग्रह अवश्य बुरा फल देता है।

4👉  यदि कोई व्यक्ति चतुराई से किसी को धोखा देता है, और झूठ बोलने की आदत को नहीं छोड़ता तो उस व्यक्ति का राहू ग्रह बुरा फल देता है।

5👉  यदि कोई व्यक्ति हमेशा तामसिक भोजन करता है तो, उस व्यक्ति का राहू ग्रह बुरा फल देता है।

6👉 यदि कोई व्यक्ति खाना हमेशा घर से बाहर खाता है, या बाहर का खाना हमेशा खाता है तो, उस व्यक्ति का राहू ग्रह बुरा फल देने लगता है।

खराब राहु को कैसे पहचानेगे ?
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1👉 किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो उसके ससुर, साले या साली से झगडा बढ़ने लगेगा।

2👉 किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो उसके जीवन में शत्रु बढ़ जायेंगे, और सोचने की क्षमता कम होने लगती है।

3👉  किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो उसके साथ दुर्घटना, पुलिस केस, या पत्नी के साथ लड़ाई झगडे में बढ़ोत्तरी हो जायेगी।

4👉  किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो वो व्यक्ति छोटी छोटी बातों पर गुस्सा होने लगता है, और लोगों के साथ सही तालमेल नहीं बिठा पाता है।

5👉 किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो उस व्यक्ति का एक तरह से दिमाग खराब होने लगता है, और उस व्यक्ति के सर में फालतू में छोटी छोटी चोट लगने लगती है या चक्कर आते हैं।

6👉  किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो वह व्यक्ति अधिक मदिरापान या फिर सम्भोग/हस्तमैथुन की तरफ भागने लगता है।

7👉  किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो व्यक्ति नीच हरकते करने लगता है, और निर्दयी हो जाता है।

राहु ग्रह खराब होने से होने वाले रोग
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1👉  किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो सबसे पहले उसको गैस से सम्बन्धित शिकायत बढ़ने लगती है।

2👉 किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो उसके बाल झड़ने लगते हैं, तथा बवासीर से सम्बन्धित भी समस्या होने लगती है।

3👉 किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो वो जातक पागलों की तरह व्यवहार करेगा और लगातार मानसिक तनाव में रहेगा।

4👉  किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो उसके नाखून अपने आप ही टूटने लगते हैं और व्यक्ति के सर में पीड़ा या दर्द बनी रहती है।

5👉  किसी भी व्यक्ति का अगर राहू ग्रह खराब है तो उस व्यक्ति को अचानक पता चलेगा की मुझे कोई बीमारी है और उस पर पैसा भी खूब खर्चा होगा तथा व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है।

राहु के शुभ होने पर
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राहु के शुभ होने पर व्यक्ति को कीर्ति, सम्मान, राज वैभव व बौद्धिक उपलब्धता प्राप्त होती हैं। व्यक्ति दौलतमंद होगा। कल्पना शक्ति तेज होगी। रहस्यमय या धार्मिक बातों में रुचि लेगा। राहु के अच्छा होने से व्यक्ति में श्रेष्ठ साहित्यकार, दार्शनिक, वैज्ञानिक या फिर रहस्यमय विद्याओं के गुणों का विकास होता है। इसका दूसरा पक्ष यह कि इसके अच्छा होने से राजयोग भी फलित हो सकता है। आमतौर पर पुलिस या प्रशासन में इसके लोग ज्यादा होते हैं।

मिथुन, कन्या, तुला, मकर और मीन राशियाँ राहु की मित्र राशि है तथा कर्क और सिंह शत्रु राशिया है। यह ग्रह शुक्र के साथ राजस तथा सूर्य एवं चन्द्र के साथ शत्रुता का व्यवहार करता है। बुध, शुक्र, गुरू को न तो अपना मित्र समझता है और नहीं उससे किसी प्रकार की शत्रुता ही रखता है यह अपने स्थान से पाँचवे, सातवे, नवे स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता हैं।

राहु को शुभ बनाने के अन्य उपाय
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👉 अपनी शक्ति के अनुसार संध्या को काले-नीले फूल, गोमेद, नारियल, मूली, सरसों, नीलम, कोयले, खोटे सिक्के, नीला वस्त्र किसी कोढ़ी को दान में देना चाहिए।

👉 राहु की शांति के लिए लोहे के हथियार, नीला वस्त्र, कम्बल, लोहे की चादर, तिल, सरसों तेल, विद्युत उपकरण, नारियल एवं मूली दान करना चाहिए. सफाई कर्मियों को लाल अनाज देने से भी राहु की शांति होती है।

👉 राहु से पीड़ित व्यक्ति को शनिवार का व्रत करना चाहिए इससे राहु ग्रह का दुष्प्रभाव कम होता है।

👉 मीठी रोटी कौए को दें और ब्राह्मणों अथवा गरीबों को चावल और मांसहार करायें।

👉 राहु की दशा होने पर कुष्ट से पीड़ित व्यक्ति की सहायता करनी चाहिए।

👉 गरीब व्यक्ति की कन्या की शादी करनी चाहिए।

👉 राहु की दशा से आप पीड़ित हैं तो अपने सिरहाने जौ रखकर सोयें और सुबह उनका दान कर दें इससे राहु की दशा शांत होगी।

👉 ऐसे व्यक्ति को चांदी का कड़ा दाहिने हाथ में धारण करना चाहिए।

👉 हाथी दाँत का लाकेट गले में धारण करना चाहिए।
 
👉 अपने पास सफेद चन्दन अवश्य रखना चाहिए। सफेद चन्दन की माला भी धारण की जा सकती है।

👉 जमादार को तम्बाकू का दान करना चाहिए।

👉 चांदी की चेन गले में पहने ।

👉 दिन के संधिकाल में अर्थात् सूर्योदय या सूर्यास्त के समय कोई महत्त्वपूर्ण कार्य नही करना चाहिए।

👉 यदि किसी अन्य व्यक्ति के पास रुपया अटक गया हो, तो प्रातःकाल पक्षियों को दाना चुगाना चाहिए।

👉 झुठी कसम नही खानी चाहिए।

राहु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु शनिवार का दिन, राहु के नक्षत्र (आर्द्रा, स्वाती, शतभिषा) तथा शनि की होरा में अधिक शुभ होते हैं।

क्या न करें
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मदिरा और तम्बाकू के सेवन से राहु की दशा में विपरीत परिणाम मिलता है अत: इनसे दूरी बनाये रखना चाहिए. आप राहु की दशा से परेशान हैं तो संयुक्त परिवार से अलग होकर अपना जीवन यापन करें।

मैं तुझे बताता हूँ कि ब्राह्मण कौन है।

ब्राह्मण को जानना चाहता है?मैं तुझे बताता हूँ कि ब्राह्मण कौन है।

ब्राह्मण वह है जो वशिष्ठ के रूप में केवल अपना एक दंड जमीन में गाड़ देता है,जिससे विश्वामित्र के समस्त अस्त्र शस्त्र चूर हो जाते हैं और विश्वामित्र लज्जित होकर कह पड़ते हैं-
धिक बलं क्षत्रिय बलं,ब्रह्म तेजो बलं बलं।
एकेन ब्रह्म दण्डेन,सर्वस्त्राणि हतानि में।
(क्षत्रिय के बल को धिक्कार है।ब्राह्मण का तेज ही असली बल है।ब्राह्मण वशिष्ठ का एक ब्रह्म दंड मेरे समस्त अस्त्र शस्त्र को निर्वीर्य कर दिया)

ब्राह्मण वह है जो परशुराम के रूप में एक बार नहीं,21 बार आततायी राजाओं का संहार करता है।जिसके लिए भगवान राम भी कहते हैं-

विप्र वंश करि यह प्रभुताई।
अभय होहुँ जो तुम्हहिं डेराई।
जिनके विषय मे यह श्लोक प्रसिद्ध है-

अग्रतः चतुरो वेदाः पृष्ठतः सशरं धनुः ।
इदं ब्राह्मं इदं क्षात्रं शापादपि शरादपि ।।

चार वेद मौखिक हैं अर्थात् पूर्ण ज्ञान है एवं पीठपर धनुष-बाण है, अर्थात् शौर्य है,अर्थात् यहां ब्राह्मतेज एवं क्षात्रतेज, दोनों हैं । जो कोई इनका विरोध करेगा, उसे शाप देकर अथवा बाणसे परशुराम पराजित करेंगे । ऐसी उनकी विशेषता है ।

ब्राह्मण वह है,जो दधीचि के रूप में अपनी हड्डियों से बज्र बनवाकर,वृत्तासुर का अंत कराता है।जब तक धरती है,इतिहास मिट नहीं सकता-

ठीक है, ये प्राण क्षण-भंगुर हमारे,
किन्तु फिर भी हैं सभी को प्राण प्यारे।
मृत्यु का भय तो सभी को दाहता है,
तुम बताओ कौन मरना चाहता है?
किन्तु घबराओ नहीं, मैं प्राण दूँगा,
मृत्यु-भय से तर्क का आश्रय न लूँगा।
स्वार्थ है इसमें तुम्हारा जानता हूँ,
किन्तु यह परमार्थ भी है, मानता हूँ।
यों तुम्हें लज्जित किया, मत मान लेना,
भाव हैं सच्चे हृदय के जान लेना।
सोचता हूँ जन्म का उद्देश्य क्या है?
किस लिए पैदा हुआ हूँ क्या किया है?
बहुत वर्षों साधना की, ज्ञान पाया,
किन्तु लगता व्यर्थ ही जीवन गँवाया।
आज अपने पास देखी मृत्यु छाया,
और सच्चे ज्ञान का आभास पाया।
विश्व, वैभव, मान-यश ले क्या करूंगा?
सब मिलेगा किन्तु फिर भी तो मरूंगा।
इस लिए बलिदान तो क्या जानता हूँ,
मैं इसे कर्त्तव्य-पालन मानता हूँ।
आज तुमसे माँगता क्या मान मेरा?
मृत्यु ही जब बन गई वरदान मेरा।
मैं मरूंगा ताकि बाकी लोग जीवें,
फिर न दानव मानवों का रक्त पीवें।
क्या पता है, मैं कहाँ को जा रहा हूँ,
किन्तु अन्तिम शाँति सचमुच पा रहा हूँ।
लोक के हित को रहा है प्राण-अर्पण,
आज मेरा हो गया है धन्य जीवन।
और को सुख दे रहा हूँ कष्ट सहकर,
हो गए ऋषि शान्त इतनी बात कहकर।

ब्राह्मण वह है,जो चाणक्य के रूप में,अपना अपमान होने पर धनानन्द को चुनौती देकर कहता है कि अब यह शिखा तभी बँधेगी जब तुम्हारा  नाश कर दूंगा और ऐसा करके ही शिखा बाँधता है।

ब्राह्मण वह है जो अर्थ शास्त्र की ऐसी पुस्तक देता है,जो आज तक अद्वितीय है।

ब्राह्मण वह है जो पुष्य मित्र शुंग के रूप में मौर्य वंश के अंतिम सम्राट बृहद्रथ को ,उठाता है तलवार और स्वाहा कर देता है।भारत को बौद्ध होने से बचा लेता है।यवन आक्रमण की ऐसी की तैसी कर देता है।

ब्राह्मण वह है जो मण्डन मिश्र के रूप में जन्म लिया और जिसके घर पर तोता भी संस्कृत में दर्शन पर वाद विवाद करते थे।अगर पता नहीं है तो यह श्लोक पढो, जो आदि शंकर के मण्डन मिश्र के घर का पता पूछने पर उनकी दासियों ने कहा था-
स्वतः प्रमाणं परतः प्रमाणं,
कीरांगना यत्र गिरा गिरंति।
द्वारस्थ नीण अंतर संनिरुद्धा,
जानीहि तंमण्डन पंडितौकः।
(जिस घर के दरवाजे पर पिंजरे में बन्द तोता भी वेद के स्वतः प्रमाण या परतः प्रमाण की चर्चा कर रहा हो,उसे ही मण्डन मिश्र का घर समझना।)

ब्राह्मण वह है जो शंकराचार्य के रूप में 32 वर्ष की उम्र तक वह सब कर जाता है,जिसकी कल्पना भी सम्भव नहीं है।अद्वैत वेदान्त,दर्शन का शिरोमणि।

ब्राह्मण वह है जो अस्त व्यस्त अनियंत्रित भाषा को व्याकरण बद्ध कर पाणिनि के रूप में अष्टाध्यायी लिख देता है।

ब्राह्मण वह है,जो पतंजलि के रूप में अश्वमेध यज्ञ कराता है और महाभाष्य लिख देता है।

ब्राह्मण वह है जो तुलसी के रूप में ऐसा महाकाव्य श्री राम चरित मानस, लिख देता है,जो जन जन की गीता बन जाती है।

और बताऊँ ब्राह्मण कौन है?

ब्राह्मण है वह नारायण,जिसने महाराणा प्रताप व उनके भाई शक्ति सिंह के मध्य युद्ध को रोकने के लिए,उनके समक्ष चाकू से अपनी ही हत्या कर दिया था।पता नहीं है तो श्याम नारायन पांडेय का महाकाव्य हल्दी घाटी,प्रथम सर्ग की ये पंक्तियां पढ़ो-

उठा लिया विकराल छुरा
सीने में मारा ब्राह्मण ने।
उन दोनों के बीच बहा दी
शोणित–धारा ब्राह्मण ने।।

वन का तन रँग दिया रूधिर से
दिखा दिया¸ है त्याग यही।
निज स्वामी के प्राणों की
रक्षा का है अनुराग यही॥

ब्राह्मण था वह ब्राह्मण था¸
हित राजवंश का सदा किया।
निज स्वामी का नमक हृदय का
रक्त बहाकर अदा किया॥

ब्राह्मण वह है जो श्याम नारायण पांडेय के रूप में जन्म लेकर,हल्दी घाटी,जौहर,जैसे हिंदी के महाकाव्य लिख डाले, जो अपनी दार्शनिकता व वीर रस के कारण अमर है।थोड़ा परिश्रम करो और जौहर के मंगलाचरण की प्रारंभिक पंक्तियाँ ही पढ़ लो,बुद्धि ठीक हो जाएगी-

गगन के उस पार क्या,
पाताल के इस पार क्या है?
क्या क्षितिज के पार? जग
जिस पर थमा आधार क्या है?

दीप तारों के जलाकर
कौन नित करता दिवाली?
चाँद - सूरज घूम किसकी
आरती करते निराली?

ब्राह्मण वह है जो सूर्य कांत त्रिपाठी के रूप में अवतरित हुआ और अपने साहित्य के निरालेपन,जीवन के अक्खड़पन से निराला बन गया।अमर है निराला की राम की शक्ति पूजा-

बोले विश्वस्त कण्ठ से जाम्बवान-"रघुवर,
विचलित होने का नहीं देखता मैं कारण,
हे पुरुषसिंह, तुम भी यह शक्ति करो धारण,
आराधन का दृढ़ आराधन से दो उत्तर,
तुम वरो विजय संयत प्राणों से प्राणों पर।
रावण अशुद्ध होकर भी यदि कर सकता त्रस्त
तो निश्चय तुम हो सिद्ध करोगे उसे ध्वस्त,
शक्ति की करो मौलिक कल्पना, करो पूजन।

धिक् जीवन को जो पाता ही आया विरोध,
धिक् साधन जिसके लिए सदा ही किया शोध
जानकी! हाय उद्धार प्रिया का हो न सका,
वह एक और मन रहा राम का जो न थका,
जो नहीं जानता दैन्य, नहीं जानता विनय,
कर गया भेद वह मायावरण प्राप्त कर जय,

ब्राह्मण को समझना चाहते हो तो अटल विहारी वाजपेयी के धाराप्रवाह भाषण को सुनिए।भारत रग रग में भर जाएगा।यह भी न हो सके तो सिर्फ ये पंक्तियां पढ़ लीजिये जनाब-

भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं।
कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है।
यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है,
यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है,
इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जियेंगे तो इसके लिये
मरेंगे तो इसके लिये।

आग्नेय परीक्षा की
इस घड़ी में—
आइए, अर्जुन की तरह
उद्घोष करें :
‘‘न दैन्यं न पलायनम्।’

ब्राह्मण ने तो भगवान को भी अश्रु बहाने को बाध्य कर दिया था।याद है गरीब ब्राह्मण सुदामा कृष्ण की मित्रता।
महाकवि नरोत्तम दास के शब्दों में-

ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग, कंटक-जाल लगे पुनि जोये।
हाय! महादुख पायो सखा तुम, आये इतै न किते दिन खोये॥
देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सौं पग धोये।

ब्राह्मण प्रज्ञा चक्षु होता है,प्रज्ञाचक्षु।बिना आंख के असम्भव को संभव बना देता है।मूर्खों को यह समझ मे नहीं आएगा।जाकर वर्तमान में स्वामी राम भद्राचार्य अर्थात गिरिधर मिश्र जी को चित्र कूट में देखिए।02 माह के थे,जब आंख की रोशनी चली गयी।अब तक 100 से ज्यादा ग्रंथों के लेखक,22 भाषाओं के ज्ञाता,संस्कृत में दो महाकाव्य-श्री भार्गव राघवीयम और गीत रामायनम।
हिंदी में दो महाकाव्य-अष्टावक्र और अरुंधती।

प्रकृति के सुकुमार कवि,श्री सुमित्रा नन्दन पन्त जी को क्यों विस्मृत करें।कुछ तो है ब्राह्मण रक्त में जरूर।देखिए पन्त जी की उदार विश्व कल्याण की वाणी-
तप रे, मधुर मन!

विश्व-वेदना में तप प्रतिपल,
जग-जीवन की ज्वाला में गल,
बन अकलुष, उज्जवल औ\' कोमल
तप रे, विधुर-विधुर मन!

अपने सजल-स्वर्ण से पावन
रच जीवन की पूर्ति पूर्णतम
स्थापित कर जग अपनापन,
ढल रे, ढल आतुर मन!

तेरी मधुर मुक्ति ही बन्धन,
गंध-हीन तू गंध-युक्त बन,
निज अरूप में भर स्वरूप, मन
मूर्तिमान बन निर्धन!
गल रे, गल निष्ठुर मन।

ब्राह्मण कभी भी निम्न चिंतन करता ही नहीं है।वह हमेशा सत्य,न्याय,धर्म,सदाचार,देश प्रेम की बात करता है।राम नरेश त्रिपाठी जी की इस कविता से यह बात प्रमाणित हो जाती है-

हे प्रभु आनंद-दाता
हे प्रभु आनंद-दाता ज्ञान हमको दीजिये,
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए,
लीजिये हमको शरण में, हम सदाचारी बनें,
ब्रह्मचारी धर्म-रक्षक वीर व्रत धारी बनें,
निंदा किसी की हम किसी से भूल कर भी न करें,
ईर्ष्या कभी भी हम किसी से भूल कर भी न करें,
सत्य बोलें, झूठ त्यागें, मेल आपस में करें,
दिव्या जीवन हो हमारा, यश तेरा गाया करें,
जाये हमारी आयु हे प्रभु लोक के उपकार में,
हाथ डालें हम कभी न भूल कर अपकार में,
कीजिए हम पर कृपा ऐसी हे परमात्मा,
मोह मद मत्सर रहित होवे हमारी आत्मा,
प्रेम से हम गुरु जनों की नित्य ही सेवा करें,
प्रेम से हम संस्कृति की नित्य ही सेवा करें,
योग विद्या ब्रह्म विद्या हो अधिक प्यारी हमें,
ब्रह्म निष्ठा प्राप्त कर के सर्व हितकारी बनें,
हे प्रभु आनंद-दाता ज्ञान हमको दीजिये।

ब्राह्मण की तो इतनी लंबी श्रृंखला है कि ग्रन्थ लिखा जा सकता है।आशा,उत्साह,त्याग,गति,यही सब तो ब्राह्मण की पूंजी है।देखिए बाल कृष्ण शर्मा नवीन की यह रचना-

कौन कहता है की तुमको खा सकेगा काल ?
अरे? तुम हो काल के भी काल अति विकराल
काल का तब धनुष, दिक् की है धनुष की डोर;
धनु-विकंपन से सिहरती सृजन-नाश-हिलोर!
तुम प्रबल दिक्-काल-धनु-धारी सुधन्वा वीर;
तुम चलाते हो सदा चिर चेतना के तीर!

क्या बिगाड़ेगा तुम्हारा, यह क्षणिक आतंक?
क्या समझते हो की होगे नष्ट तुम अकलंक?
यह निपट आतंक भी है भीति-ओत-प्रोत!
और तुम? तुम हो चिरंतन अभयता के स्त्रोत!!
एक क्षण को भी न सोचो की तुम होगे नष्ट,
तुम अनश्वर हो! तुम्हारा भाग्य है सुस्पष्ट!

चिर विजय दासी तुम्हारी, तुम जयी उद्बुद्ध,
क्यों बनो हट आश तुम, लख मार्ग निज अवरुद्ध?
फूँक से तुमने उड़ाई भूधरों की पाँत;
और तुमने खींच फेंके काल के भी दाँत;
क्या करेगा यह बिचारा तनिक सा अवरोध?
जानता है जग तुम्हारा है भयंकर क्रोध!

जब करोगे क्रोध तुम, तब आएगा भूडोल,
काँप उठेंगे सभी भूगोल और खगोल,
नाश की लपटें उठेंगी गगन-मंडल बीच;
भस्म होंगी ये असामाजिक प्रथाएँ नीच!
औ पधारेगा सृजन कर अग्नि से सुस्नान;
मत बनो गत आश! तुम हो चिर अनंत महान!

राम विलास शर्मा का नाम तो सबने सुना ही है।ब्राह्मण कुल मणि शर्मा जी ने लगभग 100 पुस्तकें लिखा।निराला को प्रसिद्धि दिलाई।अब कोई मूर्ख इन्हें न पढ़े, तो
किसका दोष?इनकी एक ही रचना से इनके व्यक्तित्व का दर्शन हो जाता है-

राम विलास शर्मा की प्रसिद्ध रचना-कवि।

वह सहज विलम्बित मंथर गति जिसको निहार
गजराज लाज से राह छोड़ दे एक बार,
काले लहराते बाल देव-सा तन विशाल,
आर्यों का गर्वोन्नत प्रशस्त, अविनीत भाल,
झंकृत करती थी जिसकी वीणा में अमोल,
शारदा सरस वीणा के सार्थक सधे बोल,-
कुछ काम न आया वह कवित्व, आर्यत्व आज,
संध्या की वेला शिथिल हो गए सभी साज।
पथ में अब वन्य जन्तुओं का रोदन कराल।
एकाकीपन के साथी हैं केवल श्रृगाल।

अब कहाँ यक्ष से कवि-कुल-गुरु का ठाट-बाट ?
अर्पित है कवि चरणों में किसका राजपाट ?
उन स्वर्ण-खचित प्रासादों में किसका विलास ?
कवि के अन्त:पुर में किस श्यामा का निवास?
पैरों में कठिन बि‍वाई कटती नहीं डगर,
आँखों में आँसू, दुख से खुलते नहीं अधर !
खो गया कहीं सूने नभ में वह अरुण राग,
धूसर संध्या में कवि उदास है वीतराग !
अब वन्य-जन्तुओं का पथ में रोदन कराल ।
एकाकीपन के साथी हैं केवल श्रृगाल ।

अज्ञान-निशा का बीत चुका है अंधकार,
खिल उठा गगन में अरुण-ज्योति का सहस्नार ।
किरणों ने नभ में जीवन के लिख दिए लेख,
गाते हैं वन के विहग-ज्योति का गीत एक ।
फिर क्यों पथ में संध्या की छाया उदास ?
क्यों सहस्नार का मुरझाया नभ में प्रकाश ?
किरणों ने पहनाया था जिसको मुकुट एक,
माथे पर वहीं लिखे हैं दुख के अमिट लेख।
अब वन्य जन्तुओं का पथ में रोदन कराल ।
एकाकीपन के साथी हैं, केवल श्रृगाल।

इन वन्य-जन्तुओं से मनुष्य फिर भी महान्,
तू क्षुद्र-मरण से जीवन को ही श्रेष्ठ मान।
‘रावण-महिमा-श्यामा-विभावरी-अन्धकार’-
छँट गया तीक्ष्‍ण-बाणों से वह भी तम अपार।
अब बीती बहुत रही थोड़ी, मत हो निराश
छाया-सी संध्या का यद्यपि धूसर प्रकाश।
उस वज्र-हृदय से फिर भी तू साहस बटोर,
कर दिए विफल जिसने प्रहार विधि के कठोर।
क्या कर लेगा मानव का यह रोदन कराल ?
रोने दे यदि रोते हैं वन-पथ में श्रृगाल।

कट गई डगर जीवन की, थोड़ी रही और,
इन वन में कुश-कंटक, सोने को नहीं ठौर।
क्षत चरण न विचलित हों, मुँह से निकले न आह,
थक कर मत गिर पडऩा, ओ साथी बीच राह।
यह कहे न कोई-जीर्ण हो गया जब शरीर,
विचलित हो गया हृदय भी पीड़ा अधीर।
पथ में उन अमिट रक्त-चिह्नों की रहे शान,
मर मिटने को आते हैं पीछे नौजवान।
इन सब में जहाँ अशुभ ये रोते हैं श्रृगाल।
नि‍र्मित होगी जन-सत्ता की नगरी वि‍शाल।

एक और ब्राह्मण,श्री धर पाठक,क्या अनुभूति है,क्या ज्ञान है,क्या शब्द है।एक बात तो माननी ही होगी कि ब्राह्मण हमेशा उदात्त भाव प्रेमी ही होता है,इसी लिए आजकल लोग इससे जलते भी हैं।देखिए पाठक जी की रचना-

भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है
शुचि भाल पै हिमाचल, चरणों पै सिंधु-अंचल
उर पर विशाल-सरिता-सित-हीर-हार-चंचल
मणि-बद्धनील-नभ का विस्तीर्ण-पट अचंचल
सारा सुदृश्य-वैभव मन को लुभा रहा है
भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है

हे वंदनीय भारत, अभिनंदनीय भारत
हे न्याय-बंधु, निर्भय, निर्बंधनीय भारत
मम प्रेम-पाणि-पल्लव-अवलंबनीय भारत
मेरा ममत्व सारा तुझमें समा रहा है
भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है

श्री धर पाठक,हिन्द महिमा

।जय, जयति–जयति प्राचीन हिंद।
जय नगर, ग्राम अभिराम हिंद ।
जय, जयति-जयति सुख-धाम हिंद ।
जय, सरसिज-मधुकर निकट हिंद
जय जयति हिमालय-शिखर-हिंद
जय जयति विंध्य-कन्दरा हिंद
जय मलयज-मेरु-मंदरा हिंद।
जय शैल-सुता सुरसरी हिंद
जय यमुना-गोदावरी हिंद
जय जयति सदा स्वाधीन हिंद
जय, जयति–जयति प्राचीन हिंद।

ब्राह्मण वह है जो गाय का मांस नहीं खाता है,बल्कि इसे मात्र मुंह से लगाने का आदेश देने पर,मंगल पांडेय के रूप में, तत्काल अपने अधिकारी को गोली मार देता है और 1857 की क्रांति का नायक बन जाता है।मरे हुओं में प्राण फूंक देता है।

ब्राह्मण वह है जो बंकिम चन्द्र चटर्जी के रूप में धरती पर आता है और गुलामी की जंजीरों से खिन्न होकर,वेद के पृथ्वी सूक्त का नया संस्करण,वन्दे मातरम के रूप में देकर क्रांति का नायक बन जाता है।देखिए आनन्द मठ के सन्यासी स्वामी भवानन्द का क्रांति गीत-

वंदे मातरम्‌ ।

सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्‌
शस्यश्यामलां मातरम्‌ ।
वन्दे मातरम।

शुभ्रज्योत्‍स्‍नापुलकितयामिनीं,
फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीं,
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीं,
सुखदां वरदां मातरम्‌ ॥
वंदे मातरम्‌ ।

कोटि-कोटि-कण्ठ-कल-कल-निनाद-कराले,
कोटि-कोटि-भुजैधृत-खरकरवाले,
अबला केन मा एत बले ।
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीं
रिपुदलवारिणीं मातरम्‌ ॥
वंदे मातरम्‌ ।

तुमि विद्या, तुमि धर्म,
तुमि हृदि, तुमि मर्म,
त्वं हि प्राणाः शरीरे,
बाहुते तुमि मा शक्ति,
हृदये तुमि मा भक्ति,
तोमारई प्रतिमा गडि मन्दिरे-मन्दिरे मातरम्‌ ॥
वंदे मातरम्‌ ।

त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी,
कमला कमलदलविहारिणी,
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्‌
कमलां अमलां अतुलां सुजलां सुफलां मातरम्‌ ॥
वंदे मातरम्‌ ।

श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषितां
धरणीं भरणीं मातरम्‌ ॥
वंदे मातरम्‌ ।

और बताऊँ ब्राह्मण क्या होता है?
ब्राह्मण होता है बाजीराव पेशवा,जो शिखा धारण करता है,चंदन लगाता है और विशाल मुस्लिम साम्राज्य को अपनी लपलपाती तलवार से काट डालता है।जीवन मे लगभग 41 युद्ध लड़ता है और कोई भी हारता नहीं है।
विषम परिस्थितियों में भी कहता है-

चीते की चाल, बाज की नजर और बाजीराव की तलवार पर संदेह नहीं करते.

अरे,मैं तो कुछ भूल ही गया था।ब्राह्मण होता है प्रचेता ऋषि का पुत्र महर्षि वाल्मीकि,जो क्रौंच पक्षी की हत्या से ऐसा विक्षुब्ध होता है कि संस्कृत का पहला महाकाव्य रामायण लिख देता है और ऐसी बुद्धि का प्रयोग करता है कि आज तक विद्वान इसी ग्रन्थ से रक्त,अस्थि,मज़्ज़ा प्राप्त करते हैं। 

ब्राह्मण होता है बाल गंगाधर तिलक,जो उस समय निडर हो कर उद्घोष करता है-स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे,जब शेष लोग अंग्रेजों के समक्ष दंडवत कर रहे होते हैं।वेलेंटाइन शिरोल ने जिसे कहा था-फादर आफ इंडियन अनरेस्ट।

ब्राह्मण होती है झांसी की रानी लक्ष्मी बाई,जिसके सन 1857 की गाथा को याद कर सुभद्रा कुमारी चौहान को लिखना पड़ जाता है-
चमक उठी सन सत्तावन में,
वह तलवार पुरानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो,
झांसी वाली रानी थी।

अरे रुको,रुको,अभी जाना मत।अभी कुछ और लिखने वाला हूँ।ब्राह्मण क्या है,इसे वीर सावरकर के इस कथन में खोजो-

काल स्वयं मुझसे डरा है,
मैं काल से नहीं।
काले पानी का कालकूट पीकर,
काल से कराल स्तंभों को झकझोर कर,
मैं बार बार लौट आया हूँ,
और फिर भी मैं जीवित हूँ।
हारी मृत्यु है,मैं नहीं।

अब इस लेख को और नहीं बढ़ाना चाहता।इसका समापन अब मैं अपनी ही तीन रचनाओं से करता हूँ।क्यों न करूँ?आखिर में भी तो ब्राह्मण हूँ और मुझे ब्राह्मण होने पर गर्व है।

कुहासा क्या कर लेगा?

तुम चलो सूर्य की चाल,
कुहासा क्या कर लेगा?
पल पल यह पथ निर्मित होगा,
गगन लोक कुहरा विचरेगा,
सूरज के इस तप के आगे,
घना अँधेरा नहीं टिकेगा।
जैसे कल रण छोड़ गया था,
वैसे आज पराजित होगा।
हे मानव!बस तन्मय होकर,
करते रहो प्रहार,
कुहासा क्या कर लेगा?
तुम चलो सूर्य की चाल,
कुहासा क्या कर लेगा?

उसमे कण कण तिमिर भरा है,
दरवाजे तम का पहरा है,
दीपों की लड़ियाँ बिखरी हैं,
बर्फीली रातें गहरी हैं,
सभी दीप मिल महाज्वाल बन,
करो अँधेरा पार,
कुहासा क्या कर लेगा?
तुम चलो सूर्य की चाल,
कुहासा क्या कर लेगा?

लहरें आती हैं आने दे,
सागर आज मचल जाने दे,
आसमान यह साक्षी होगा,
सच में तू इतिहास रचेगा,
श्वासों की गति रोक रोक कर,
साहिल-नाव,संभाल,
कुहासा क्या कर लेगा?
तुम चलो सूर्य की चाल,
कुहासा क्या कर लेगा?

राज नाथ तिवारी।

उस देश का यारों क्या होगा?

जिस देश में नाटक होते हों,
पाखंडी झूठे रोते हों,
छल,छद्म,का स्वागत होता हो,
स्वार्थी ही काँटा बोता हो,
अधिकारों का पागलपन हो,
कर्तव्य-शून्य-अपनापन हो,
अंतर्मन में हो घनी रात,
बाहर दर्शित वंचक प्रकाश,
सब नाम राम का लेते हों,
रावण की मदिरा पीते हों,
वाणी से शुभ वाचाली हों,
कर्मों से कुटिल कुचाली हों,
उस देश का यारों क्या होगा?

जिस देश में गीता लज्जित हो,
दासों का कैपिटल सज्जित हो,
बस दलित ही मूल निवासी हों,
सावर्णिक हुए प्रवासी हों,
मति मन्द सुशोभित होते हों,
मति मान कुपोषित होते हों,
ग्रंथों का मर्दन होता हो,
धर्मों का क्रंदन होता हो,
निज सैन्य बनाये जाते हों,
घर आग लगाए जाते हों,
आसुरी शक्ति की माया हो,
न हृदय में कोई दाया हो,
उस देश का यारों क्या होगा?

जिस देश में ब्राह्मण सहमा हो,
नतमस्तक उसकी गरिमा हो,
नामों,गोत्रों,में,टूटा हो,
बस बात बात में रूठा हो,
अज्ञानी और विलासी हो,
कर्मों से सत्यानाशी हो,
वैदिक धर्मों को भूला हो,
स्वार्थों में आग बबूला हो,
न पढ़ता हो,न लिखता हो,
ज्ञानी अपने को कहता हो,
उच्चादर्शों में जीता हो,
प्याला में मदिरा पीता हो,
उस देश का यारों क्या होगा?

जिस देश में राम विवादित हों,
अपने घर से निष्कासित हों,
कोई भी नर आ जाता हो,
यह देश गुलाम बनाता हो,
मंदिर को तोड़ा जाता हो,
निज धर्म को छोड़ा जाता हो,
हमलावर महिमामण्डित हों,
मिट्टी के वीर विखंडित हों,
इतिहास कलंकित होता हो,
अन्याय प्रसंसित होता हो,
भारत को मूरख कहते हों,
योरप,विद्वान समझते हैं,
उस देश का यारों क्या होगा?

पंडित राज नाथ तिवारी।

पश्य!पश्य!नटराजःनृत्यति।

संस्कृत वाङ्मय विमला सरिता,
प्रवहति भारत देशे।
बहु अवरोधम,विपुल विरोधम,
जीवति यद्यपि क्लेशे।

मार्गे पापी रिपु संतापी,
अधुना इयं अभंगा।
पावन गंगा यमुना धारा,
शीतल तरल तरंगा।

अस्मिन कवि भवभूति कारुणिक,
पूंजीभूतं नीरं।
रामः सीता यादे विलपति,
दहति समस्त शरीरं।

वाणभट्ट कल्लोल प्रचंडा,
वाणी धावति वेगा।
अचल भूमि जन मंगलकारी,
शौम्या दिव्या गंगा।

रिक यजु साम अथर्व समाहित,
परम पवित्रे नीरे।
ऋषि गण मंगल गीतं गायन,
संस्कृत तटिनी तीरे।

आरण्यक उपनिषद मनोहर,
हृदय हारिणी शोभा।
दृष्ट्वा मधुरा हरीतिमा खलु,
कस्य हृदय न लोभा।

भीष्म युधिष्ठिर विदुर प्रभृतयः,
निवसति विमल विचारे।
पांचजन्यधारी स्वर सलिला,
कुत्रास्मिन संसारे?

मर्यादा पुरुषोत्तम जीवन,
रामायण उपजिव्या।
वर्षति नीरद जलकण झम झम,
भवति वारिणी नव्या।

पश्य!पश्य!,नटराजः नृत्यति,
नव पंचा उद्घोषति।
पाणिनि ऋषि एकाग्री भूत्वा,
अष्टाध्यायी पोषति।

मूर्ख अतीते अति भयभीते,
इह काले अपि पाहन।
उत्तिष्ठत!जाग्रत!हे भू सुर!
कुरु संस्कृतावगाहन।
पंडित राज नाथ तिवारी।
रचनाकार
कवि पंडित राज नाथ तिवारी जी

नक्षत्र परिचय

*नक्षत्र* :

एक स्थान से दुसरे स्थान पर पृथ्वी के अयन चलने के कारण खिसकते प्रतीत होने वाले तारामंडलों का नाम नक्षत्र है!तैत्तिरीय संहिता में कहा गया है सृष्टि सर्वत्र जल में रहने पर सृष्टि की शुरुआत में जो तर गए वे तारे हैं!

        *अश्विनी नक्षत्र*

अश्विनी नक्षत्र का वैदिक नाम अश्वयुज है!अश्विनी नक्षत्र में कुल तीन तारे होते हैं,जो आपस में मिलकर घोड़े के मुख जैसी आकृति का निर्माण करते हैं!

अश्विनी नक्षत्र का मालिक अश्विनी कुमार है,और ग्रहों में इस नक्षत्र का मालिक है केतु !यह क्षिप्र नक्षत्र है,अतः इसमें खरीद-बेच,यात्रारम्भ,विद्यारंभ किया जा सकता है!तिर्यक मुख नक्षत्र होने के कारण जलयात्रा,विमान यात्रा,मशीनरी चालू करना आदि कार्य किये जा सकते हैं!चैत्र मास में अश्विनी नक्षत्र को कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए क्योंकि इसका प्रभाव शून्य होता है!मंगलवार को अश्विनी नक्षत्र होने पर अमृतसिद्धि और रविवार को अश्विनी नक्षत्र होने पर सर्वार्थसिद्धि नक्षत्र का योग करता है!रविवार को अश्विनी नक्षत्र आनंद योग का निर्माण करता है!अपवादस्वरूप अमृतसिद्धि योग यदि सप्तमी तिथी को पड़े तो विष का निर्माण करता है,अर्थात त्याज्य है!अश्विनी नक्षत्र गंडांत संज्ञक होता है इसकी शुरुआत की दो घड़ी अर्थात 48 मिनट गंडांत होते हैं!परन्तु रविवार को अश्विनी नक्षत्र में जन्म होने पर गंडांत का दोष काफी हद तक कम हो जाता है!अश्विनी नक्षत्र के लिए केले,आक व धतूरे के वृक्ष की पूजा करनी चाहिए!अश्विनी नक्षत्र पुरुष संज्ञक और मरीचि गोत्र का होता है!पञ्च तत्वों में इसका तत्व पृथ्वी है!यह नक्षत्र-पुरुष के सर का अधिष्ठाता होता है!इस नक्षत्र की योनी अश्व,नाड़ी आद्या और गण देव होता है!

कारकत्व:-घोड़ों से सम्बंधित लोग,आधुनिक काल के हिसाब से वाहनों से सम्बंधित लोग!सेनापति,शरीर की चिकित्सा करने वाले चिकित्सक!अधीनस्थता में काम करने वाले लोग!रूपाजीवी अर्थात सुंदरता से धन कमाने वाले लोग!कृषि कर्म करने वाले !

नक्षत्रफल:-सुरूप चमकयुक्त बड़ी आँखें!आकर्षक उभारयुक्त ललाट,कार्यदक्ष,बुद्धिमान,अच्छी नीरोग शक्ति वाला,बातों से प्रभावित करने वाला होता है!दृढ़ निश्चय या यूं कहें की अड़ियलपन इनकी खास पहचान होती है!

पदार्थ:-चावल,घी,अनाज,कपडा,घास,चारा,जड़ी-बूटियाँ,केमिकल आदि!

व्यक्ति:-घोड़ों के व्यापारी,प्रशिक्षक,घुडदौड कराने वाले,वाहन उद्योग से सम्बंधित लोग,चिकित्सक,कर्मचारी वर्ग,विज्ञापन की दुनिया से जुड़े लोग!

अश्विनी नक्षत्र का वैदिक मंत्र:- "अश्विना तेजसाचक्षु: प्रIणेन सरस्वतीवीर्यम् ! वाचेंद्रो बलेनेंद्रा यदद्युरिन्द्रयम्"

बीमारियाँ:-सर में चोट,दुर्बलता,मिर्गी,सर के आधे भाग में दर्द,मूर्छा,असाधारण नींद,पक्षाघात,मलेरिया,छोटी चेचक!

मानसिक गुण:-भाईयों से मतभेद,विवेक शून्य,हनुमान जी की पूजा,लोभी,भूमि के लिए चिंतित!

व्यवसाय:-पुलिस,सेना,चिकित्सा,रेलवे,मशीनरी,लोहा,घुडसवार,जेल,अदालत,कारखाना!

जानिए अमरनाथ का पूरा इतिहास

जय बाबा बर्फानी तेरी सदा ही जय हो....
पैगंबर मोहम्मद साहब का जब जन्म भी नहीं हुआ था, तब से अमरनाथ गुफा में हो रही है पूजा-अर्चना! इसलिए इस झूठ को नकारिए कि अमरनाथ गुफा की खोज एक मुस्लिम ने की थी!
जानिए अमरनाथ का पूरा इतिहास ताकि अपने बच्चों को बता सकें।
 कल बाबा बर्फानी के दर्शन के अमरनाथ यात्रा शुरू हो गयी है। अमरनाथ यात्रा शुरू होते ही फिर से सेक्युलरिज्म के झंडाबदारों ने गलत इतिहास की व्याख्या शुरू कर दी है कि इस गुफा को 1850 में एक मुसलिम बूटा मलिक ने खोजा था! पिछले साल तो पत्रकारिता का गोयनका अवार्ड घोषित करने वाले इंडियन एक्सप्रेस ने एक लेख लिखकर इस झूठ को जोर-शोर से प्रचारित किया था। जबकि इतिहास में दर्ज है कि जब इस्लाम इस धरती पर मौजूद भी नहीं था, यानी इस्लाम पैगंबर मोहम्मद पर कुरान उतरना तो छोडि़ए, उनका जन्म भी नहीं हुआ था, तब से अमरनाथ की गुफा में सनातन संस्कृति के अनुयायी बाबा बर्फानी की पूजा-अर्चना कर रहे हैं।

कश्मीर के इतिहास पर कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ और नीलमत पुराण से सबसे अधिक प्रकाश पड़ता है। श्रीनगर से 141 किलोमीटर दूर 3888 मीटर की उंचाई पर स्थित अमरनाथ गुफा को तो भारतीय पुरातत्व विभाग ही 5 हजार वर्ष प्राचीन मानता है। यानी महाभारत काल से इस गुफा की मौजूदगी खुद भारतीय एजेंसियां मानती हैं। लेकिन यह भारत का सेक्यूलरिज्म है, जो तथ्यों और इतिहास से नहीं, मार्क्सवाद- नेहरूवाद के ‘परसेप्शन’ से चलता है! वही ‘परसेप्शन’ इस बार भी बनाने का प्रयास आरंभ हो चुका है।

‘राजतरंगिणी’ में अमरनाथ

अमरनाथ की गुफा प्राकृतिक है न कि मानव निर्मित। इसलिए पांच हजार वर्ष की पुरातत्व विभाग की यह गणना भी कम ही पड़ती है, क्योंकि हिमालय के पहाड़ लाखों वर्ष पुराने माने जाते हैं। यानी यह प्राकृतिक गुफा लाखों वर्ष से है। कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ में इसका उल्लेख है कि कश्मीर के राजा सामदीमत शैव थे और वह पहलगाम के वनों में स्थित बर्फ के शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने जाते थे। ज्ञात हो कि बर्फ का शिवलिंग अमरनाथ को छोड़कर और कहीं नहीं है। यानी वामपंथी, जिसे 1850 में अमरनाथ गुफा को खोजे जाने का कुतर्क गढ़ते हैं, इससे कई शताब्दी पूर्व कश्मीर के राजा खुद बाबा बर्फानी की पूजा कर रहे थे।
नीलमत पुराण और बृंगेश संहिता में अमरनाथ।
नीलमत पुराण, बृंगेश संहिता में भी अमरनाथ तीर्थ का बारंबार उल्लेख मिलता है। बृंगेश संहिता में लिखा है कि अमरनाथ की गुफा की ओर जाते समय अनंतनया (अनंतनाग), माच भवन (मट्टन), गणेशबल (गणेशपुर), मामलेश्वर (मामल), चंदनवाड़ी, सुशरामनगर (शेषनाग), पंचतरंगिरी (पंचतरणी) और अमरावती में यात्री धार्मिक अनुष्ठान करते थे।
वहीं छठी में लिखे गये नीलमत पुराण में अमरनाथ यात्रा का स्पष्ट उल्लेख है। नीलमत पुराण में कश्मीर के इतिहास, भूगोल, लोककथाओं, धार्मिक अनुष्ठानों की विस्तृत रूप में जानकारी उपलब्ध है। नीलमत पुराण में अमरेश्वरा के बारे में दिए गये वर्णन से पता चलता है कि छठी शताब्दी में लोग अमरनाथ यात्रा किया करते थे।
नीलमत पुराण में तब अमरनाथ यात्रा का जिक्र है जब इस्लामी पैगंबर मोहम्मद का जन्म भी नहीं हुआ था। तो फिर किस तरह से बूटा मलिक नामक एक मुस्लमान गड़रिया अमरनाथ गुफा की खोज कर कर सकता है? ब्रिटिस औपनिवेशिक मार्क्सवादी और नेहरूवादी इतिहासकार का पूरा जोर इस बात को साबित करने में है कि कश्मीर में मुसलमान हिंदुओं से पुराने वाशिंदे हैं। इसलिए अमरनाथ की यात्रा को कुछ सौ साल पहले शुरु हुआ बताकर वहां मुस्लिम अलगाववाद की एक तरह से स्थापना का प्रयास किया गया है! इतिहास में अमरनाथ गुफा का उल्लेख अमित कुमार सिंह द्वारा लिखित ‘अमरनाथ यात्रा’ नामक पुस्तक के अनुसार, पुराण में अमरगंगा का भी उल्लेख है, जो सिंधु नदी की एक सहायक नदी थी। अमरनाथ गुफा जाने के लिए इस नदी के पास से गुजरना पड़ता था। ऐसी मान्यता थी कि बाबा बर्फानी के दर्शन से पहले इस नदी की मिट्टी शरीर पर लगाने से सारे पाप धुल जाते हैं। शिव भक्त इस मिट्टी को अपने शरीर पर लगाते थे।
पुराण में वर्णित है कि अमरनाथ गुफा की उंचाई 250 फीट और चौड़ाई 50 फीट थी। इसी गुफा में बर्फ से बना एक विशाल शिवलिंग था, जिसे बाहर से ही देखा जा सकता था। बर्नियर ट्रेवल्स में भी बर्नियर ने इस शिवलिंग का वर्णन किया है। विंसेट-ए-स्मिथ ने बर्नियर की पुस्तक के दूसरे संस्करण का संपादन करते हुए लिखा है कि अमरनाथ की गुफा आश्चर्यजनक है, जहां छत से पानी बूंद-बूंद टपकता रहता है और जमकर बर्फ के खंड का रूप ले लेता है। हिंदू इसी को शिव प्रतिमा के रूप में पूजते हैं। ‘राजतरंगिरी’ तृतीय खंड की पृष्ठ संख्या-409 पर डॉ. स्टेन ने लिखा है कि अमरनाथ गुफा में 7 से 8 फीट की चौड़ा और दो फीट लंबा शिवलिंग है। कल्हण की राजतरंगिणी द्वितीय, में कश्मीर के शासक सामदीमत 34 ई.पू से 17 वीं ईस्वी और उनके बाबा बर्फानी के भक्त होने का उल्लेख है।
यही नहीं, जिस बूटा मलिक को 1850 में अमरनाथ गुफा का खोजकर्ता साबित किया जाता है, उससे करीब 400 साल पूर्व कश्मीर में बादशाह जैनुलबुद्दीन का शासन 1420-70 था। उसने भी अमरनाथ की यात्रा की थी। इतिहासकार जोनराज ने इसका उल्लेख किया है। 16 वीं शताब्दी में मुगल बादशाह अकबर के समय के इतिहासकार अबुल फजल ने अपनी पुस्तक ‘आईने-अकबरी’ में में अमरनाथ का जिक्र एक पवित्र हिंदू तीर्थस्थल के रूप में किया है। ‘आईने-अकबरी’ में लिखा है- गुफा में बर्फ का एक बुलबुला बनता है। यह थोड़ा-थोड़ा करके 15 दिन तक रोजाना बढ़ता है और यह दो गज से अधिक उंचा हो जाता है। चंद्रमा के घटने के साथ-साथ वह भी घटना शुरू हो जाता है और जब चांद लुप्त हो जाता है तो शिवलिंग भी विलुप्त हो जाता है। वास्तव में कश्मीर घाटी पर विदेशी इस्लामी आक्रांता के हमले के बाद हिंदुओं को कश्मीर छोड़कर भागना पड़ा। इसके बाद 14 वीं शताब्दी के मध्य से करीब 300 साल तक यह यात्रा बाधित रही। यह यात्रा फिर से 1872 में आरंभ हुई। इसी अवसर का लाभ उठाकर कुछ इतिहासकारों ने बूटा मलिक को 1850 में अमरनाथ गुफा का खोजक साबित कर दिया और इसे लगभग मान्यता के रूप में स्थापित कर दिया। जनश्रुति भी लिख दी गई जिसमें बूटा मलिक को लेकर एक कहानी बुन दी गई कि उसे एक साधु मिला। साधु ने बूट को कोयले से भरा एक थैला दिया। घर पहुंच कर बूटा ने जब थैला खोला तो उसमें उसने चमकता हुआ हीरा पाया। वह हीरा लौटाने या फिर खुश होकर धन्यवाद देने जब उस साधु के पास पहुंचा तो वहां साधु नहीं था, बल्कि सामने अमरनाथ का गुफा था।
आज भी अमरनाथ में जो चढ़ावा चढ़ाया जाता है उसका एक भाग बूटा मलिक के परिवार को दिया जाता है। चढ़ावा देने से हमारा विरोध नहीं है, लेकिन झूठ के बल पर इसे दशक-दर-दशक स्थापित करने का यह जो प्रयास किया गया है, उसमें बहुत हद तक इन लोगों को सफलता मिल चुकी है। आज भी किसी हिंदू से पूछिए, वह नीलमत पुराण का नाम नहीं बताएगा, लेकिन एक मुसलिम गडरिए ने अमरनाथ गुफा की खोज की, तुरंत इस फर्जी इतिहास पर बात करने लगेगा। यही फेक विमर्श का प्रभाव होता है, जिसमें ब्रिटिशर्स-मार्क्सवादी-नेहरूवादी इतिहासकार सफल रहे हैं।
हरहरमहादेव

ग्रहों की शांती पेड़ पौधों की जड़ों से भी

ग्रहों की शांती पेड़ पौधों की जड़ों से भी -- सस्ता और सुन्दर

सूर्य
यदि आपकी कुंडली में सूर्य नीच का होकर तुला राशि में है और केंद्र में या लग्नस्थ है तो कृत्तिका नक्षत्र वाले दिन बेल का एक जड़ प्रात:काल तोडक़र,शिवालय में शिवजी को समर्पित करें और ऊँ भास्कराय ह्रीं मंत्र का जाप करने के पश्चात गुलाबी धागे से धारण करें. प्रतिदिन इस मंत्र का जाप करते रहें. रोग,संतानहीनता जैसी अन्य कई समस्याओं का समाधान होगा.

चंद्र
यदि आप की कुंडली में चंद्र नीच का होकर वृश्चिक राशि में है,या राहु,केतु और शनि द्वारा प्रभावित है तो, रोहिणी नक्षत्र वाले दिन खिरनी की जड़, शुद्ध करके शिवजी को समर्पित करें और ऊँ श्रां श्रीं श्रौं स:चंद्रमसे नम:
मंत्र का जाप कर के सफेद धागे में धारण करें. फेफड़े सम्बंधित रोग,एकाकीपन और भावनात्मक समस्याओं का समाधान होगा.

मंगल
आपकी कुंडली में मंगल नीच का होकर कर्क राशि में हो या आप मांगलिक हों तो मृगशिरा नक्षत्र वाले दिन अनंतमूल की जड़ शुद्धिकरण के पश्चात हनुमान जी की पूजा कर के ऊँ अं अंगारकाय नम: मंत्र का जाप कर के नारंगी धागे से धारण करें. क्रोध,अवसाद और वैवाहिक बाधा से मुक्ति मिलेगी

बुध
यदि आपकी कुंडली में बुध द्वादश,अष्टम भाव में या नीच का होकर मीन राशि में है, तो आप आश्लेषा नक्षत्र वाले दिन विधारा की जड़ गणेश भगवान को को समर्पित करने के पश्चात ऊँ बुं बुधाय नम: मंत्र का जाप कर के हरे रंग के धागे में धारण करें. इस से बुद्धि विकसित होगी तथ निर्णय लेने में हो रही त्रुटि का भी समाधान होगा.

गुरु
आपकी कुंडली में यदि गुरु राहु द्वारा युक्त है,राहु द्वारा दृष्ट है या नीच का होकर मकर राशि में है,तो शुद्ध और ताजी हल्दी की गाँठ पीले धागे में, पुनवर्सु नक्षत्र वाले दिन कृष्ण भगवान या बृहस्पति देव जी की पूजा कर के ऊँ बृं बृहस्पतये नम: मंत्र का जप करके धारण करें. व्यवसाय,नौकरी,विवाह सम्बन्धी समस्या और लीवर सम्बन्धी रोगों में लाभ होगा.

शुक्र
यदि आपकी कुंडली में शुक्र अष्टम भाव में है या नीच का होकर कन्या राशि में है, तो आप सरपोंखा की जड़, भरणी नक्षत्र वाले दिन सफेद धागे से सायंकाल के समय लक्ष्मी जी का पूजन कर ऊँ शुं शुक्राय नमः मंत्र का जाप कर के धारण करें. संतानहीनता,कर्ज की अधिकता और धन के अभाव जैसी समस्या से मुक्ति मिलेगी.

शनि
आपकी कुंडली में यदि शनि सूर्य युक्त है,सप्तम भाव में है या नीच का होकर मेष राशि में है तो आप अनुराधा नक्षत्र वाले दिन बिच्छू या बिच्छौल की घांस को नीले धागे से काली जी की पूजा के पश्चात ऊँ शं शनैश्चराय नम:
मंत्र का जाप कर के धारण करें. कार्यों में हो रहे विलम्ब,कानूनी अड़चन और रोगों से मुक्ति मिलेगी.

राहु
आपकी कुंडली में राहु लग्न,सप्तम या भाग्य स्थान मे है, तथा शुभ ग्रहों से युक्त है तो आप आद्र्रा नक्षत्र वाले दिन चन्दन की लकड़ी का टुकड़ा शिव जी का अभिषेक कर के भूरे धागे में ऊँ रां राहवे नम: मंत्र का जाप कर के धारण करें. रोग,चिड़चिड़ापन,क्रोध,बुरी आदतों तथा अस्थिरता से मुक्ति मिलेगी.

केतु
यदि आपकी कुंडली में केतु,चन्द्र या मंगल युक्त होकर लग्नस्थ है, तो आप अश्विनी नक्षत्र वाले दिन गणेश जी का पूजन करने के पश्चात शुद्ध की हुई असगन्ध या अश्वगन्धा की जड़ ऊँ कें केतवे नम: मंत्र का जाप करने के पश्चात, नारंगी धागे से धारण करें. चर्म सम्बन्धी रोग,किडनी रोगों और वैवाहिक समस्याओं में लाभ होगा.
याद रखें कि समस्या की पूर्ण मुक्ति के लिये, आपको मंत्रों का जाप प्रतिदिन करना होगा.

मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

, :       *🙏श्री गणेशाय नम:🙏*    :

           ,     *जय माता दी*



*वैवाहिक जीवन से सम्बंधित शुभ अशुभ योग।
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▪️सुखी वैवाहिक जीवन के योग

यदि सप्तमेश की स्थिति केंद्र या त्रिकोण भाव में हो या सप्तमेश एकादश भाव में स्थित हो तथा विवाह के कारक ग्रह गुरु और शुक्र शुभ भाव में स्थित हों तो जातक का वैवाहिक जीवन खुशहाल रहता है।

सप्तम भाव तथा सप्तमेश पर शुभ ग्रहों की दृष्टि जातक को खुशहाल वैवाहिक जीवन प्रदान करती है।

यदि जन्म कुंडली में सप्तमेश लग्न या पंचम भाव में हो तो ऐसे जातक का जीवनसाथी उसे दिल से प्यार करता है।

यदि नवमांश कुंडली में लग्न कुंडली के सप्तमेश की स्थिति अच्छी हो तथा नवमांश कुंडली का सप्तमेश नवमांश कुंडली में शुभ भाव में स्थित हो तो ऐसे व्यक्ति का वैवाहिक जीवन खुशहाल रहता है।

यदि वर की कुंडली के सप्तम भाव में वृषभ या तुला राशि होती है तो उसे सुंदर पत्नी मिलती है।

यदि कन्या की कुंडली में चन्द्र से सप्तम स्थान पर शुभ ग्रह बुध, गुरु, शुक्र में से कोई भी हो तो उसका पति राज्य में उच्च पद प्राप्त करता है तथा धनवान होता है।

जब सप्तमेश सौम्य ग्रह होता है तथा स्वग्रही होकर सप्तम भाव में ही उपस्थित होता है तो जातक को सुंदर, आकर्षक, प्रभामंडल से युक्त एवं सौभाग्यशाली पत्नी प्राप्त होती है।

जब सप्तमेश सौम्य ग्रह होकर भाग्य भाव में उपस्थित होता है तो जातक को शीलयुक्त, रमणी एवं सुंदर पत्नी प्राप्त होती है तथा विवाह के पश्चात जातक का निश्चित भाग्योदय होता है।

जब सप्तमेश एकादश भाव में उपस्थित हो तो जातक की पत्नी रूपवती, संस्कारयुक्त, मृदुभाषी व सुंदर होती है तथा विवाह के पश्चात जातक की आर्थिक आय में वृद्धि होती है या पत्नी के माध्यम से भी उसे आर्थिक लाभ प्राप्त होते हैं।

जिस कन्या की जन्मकुंडली के लग्न में चन्द्र, बुध, गुरु या शुक्र उपस्थित होता है, उसे धनवान पति प्राप्त होता है।

जिस कन्या की जन्मकुंडली के लग्न में गुरु उपस्थित हो तो उसे सुंदर, धनवान, बुद्धिमान पति व श्रेष्ठ संतान मिलती है।

भाग्य भाव में या सप्तम, अष्टम और नवम भाव में शुभ ग्रह होने से ससुराल धनाढच्य एवं वैभवपूर्ण होती है।

कन्या की जन्मकुंडली में चन्द्र से सप्तम स्थान पर शुभ ग्रह बुध, गुरु, शुक्र आदि में से कोई उपस्थित हो तो उसका पति राज्य में उच्च पद प्राप्त करता है तथा उसे सुख व वैभव प्राप्त होता है।

कुंडली के लग्न में चंद्र हो तो ऐसी कन्या पति को प्रिय होती है और चंद्र व शुक्र की युति हो तो कन्या ससुराल में अपार संपत्ति एवं समस्त भौतिक सुख-सुविधाएं प्राप्त करती है।

कन्या की कुंडली में वृषभ, कन्या, तुला लग्न हो तो वह प्रशंसा पाकर पति एवं धनवान ससुराल में प्रतिष्ठा प्राप्त करती है।कन्या की कुंडली में जितने अधिक शुभ ग्रह गुरु, शुक्र, बुध या चन्द्र लग्न को देखते हैं या सप्तम भाव को देखते हैं, उसे उतना धनवान एवं प्रतिष्ठित परिवार एवं पति प्राप्त होता है।

कन्या की जन्मकुंडली में लग्न एवं ग्रहों की स्थिति की गणनानुसार त्रिशांश कुंडली का निर्माण करना चाहिए तथा देखना चाहिए कि यदि कन्या का जन्म मिथुन या कन्या लग्न में हुआ है तथा लग्नेश गुरु या शुक्र के त्रिशांश में है तो उसके पति के पास अटूट संपत्ति होती है तथा कन्या सदैव ही सुंदर वस्त्र एवं आभूषण धारण करने वाली होती है।

कुंडली के सप्तम भाव में शुक्र उपस्थित होकर अपने नवांश अर्थात वृषभ या तुला के नवांश में हो तो पति धनाढच्य होता है।सप्तम भाव में बुध होने से पति विद्वान, गुणवान, धनवान होता है, गुरु होने से दीर्घायु, राजा के संपत्ति वाला एवं गुणी तथा शुक्र या चंद्र हो तो ससुराल धनवान एवं वैभवशाली होता है।

एकादश भाव में वृष, तुला राशि हो या इस भाव में चन्द्र, बुध या शुक्र हो तो ससुराल धनाढच्य और पति सौम्य व विद्वान होता है।हर पुरुष सुंदर पत्नी और स्त्री धनवान पति की कामना करती है।

जातक की कुंडली में सप्तमेश केंद्र में उपस्थित हो तथा उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि होती है, तभी जातक को गुणवान, सुंदर एवं सुशील पत्नी प्राप्त होती है।

पुरुष जातक की जन्मकुंडली के सप्तम भाव में शुभ ग्रह बुध, गुरु या शुक्र उपस्थित हो तो ऐसा जातक सौभाग्यशाली होता है तथा उसकी पत्नी सुंदर, सुशिक्षित होती है और कला, नाट्य, संगीत, लेखन, संपादन में प्रसिद्धि प्राप्त करती है। ऐसी पत्नी सलाहकार, दयालु, धार्मिक-आध्यात्मिक क्षेत्र में रुचि रखती है।

चन्द्रमा मन का कारक है,और वह जब बलवान होकर सप्तम भाव या सप्तमेश से सम्बन्ध रखता हो तो चौबीसवें साल तक विवाह करवा ही देता है।

▪️असफल वैवाहिक जीवन के योग

यदि सप्तमेश छठे, आठवें, द्वितीय या द्वादश भाव में स्थित हो तथा शादी का कारक ग्रह गुरु या शुक्र अशुभ भाव में स्थित हों तथा पाप ग्रहों से दृष्ट हों तो जातक का वैवाहिक जीवन अत्यधिक तनावपूर्ण रहता है।

यदि सप्तमेश वक्री हो तो जातक का वैवाहिक जीवन अच्छा नहीं होता।

यदि सूर्य और शुक्र पंचम, सप्तम तथा नवम भाव में स्थित हों तो ऐसे जातक का वैवाहिक जीवन अच्छा नहीं होता।

यदि केतु लग्न, चतुर्थ, पंचम या दशम भाव में स्थित हों तो ऐसे जातक शकी होने के कारण वैवाहिक जीवन का सुख नहीं ले पाते।

यदि सप्तमेश अशुभ भाव (2,6,8,12) में स्थित हों तथा षष्ठेश वक्री हो, तो जातक उम्र भर तलाक को लेकर लंबी कानूनी लड़ाई लड़ता है, लड़ाई लड़ने के बाद भी उसको तलाक में सफलता नहीं मिलती।

यदि सप्तमेश द्वादश भाव में शुक्र के साथ स्थित हो तो ऐसे जातक का चरित्र संदेहजनक होता है, जिसके कारण उसका वैवाहिक जीवन सुखी नहीं होता।

यदि चंद्रमा 6,8,12 में स्थित हो, तो जातक मानसिक स्तर पर हमेशा विचलित रहता है जिसके कारण उसका वैवाहिक जीवन सुखी नहीं रहता।

जन्म कुंडली में राहु की स्थिति लग्न, द्वितीय या अष्टम भाव में हो, तो ऐसा जातक जिद्दी स्वभाव का होने के कारण अपना वैवाहिक जीवन नष्ट कर डालता है।

यदि जन्मकुंडली में चंद्रमा और सूर्य पाप ग्रहों की राशि में (सूर्य, मंगल, शनि) हो तो ऐसे जातक कलहप्रिय होते हैं जिसके कारण उनका वैवाहिक जीवन शुभ नहीं होता।

यदि जातक की जन्मकुंडली के सप्तम भाव में सूर्य हो तो उसकी पत्नी शिक्षित, सुशील, सुंदर एवं कार्यो में दक्ष होती है, किंतु ऐसी स्थिति में सप्तम भाव पर यदि किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो दाम्पत्य जीवन में कलह और सुखों का अभाव होता है।

जातक की जन्मकुंडली में स्वग्रही, उच्च या मित्र क्षेत्री चंद्र हो तो जातक का दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है तथा उसे सुंदर, सुशील, भावुक, गौरवर्ण एवं सघन केश राशि वाली रमणी पत्नी प्राप्त होती है। सप्तम भाव में क्षीण चंद्र दाम्पत्य जीवन में न्यूनता उत्पन्न करता है।

जिनकी मंगल एवं शुक्र एक साथ बैठे हों उनके वैवाहिक जीवन में अशांति और परेशानी बनी रहती है. ग्रहों के इस योग के कारण पति पत्नी में अनबन रहती है.

शनि और राहु का सप्तम भाव होना भी वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं माना जाता है क्योंकि दोनों ही पाप ग्रह दूसरे विवाह की संभावना पैदा करते हैं.

राहु, सूर्य, शनि व द्वादशेश पृथकतावादी ग्रह हैं, जो सप्तम (दाम्पत्य)और द्वितीय (कुटुंब) भावों पर विपरीत प्रभाव डालकर वैवाहिक जीवन को नारकीय बना देते हैं। दृष्टि या युति संबंध से जितना ही विपरीत या शुभ प्रभाव होगा उसी के अनुरूप वैवाहिक जीवन सुखमय या दुखमय होगा।

राहु की दशा में शादी हो,या राहु सप्तम को पीडित कर रहा हो,तो शादी होकर टूट जाती है,यह सब दिमागी भ्रम के कारण होता है।

अष्टकूट मिलान(वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रह मैत्री, गण, भकूट और नाड़ी) आवश्यक है और ठीक न हो तो भी वैचारिक मतभेद रहता है।

▪️सप्तम भाव में स्थित राशि के अनुसार जीवन साथी का स्वाभाव

यदि जातक की जन्मकुंडली के सप्तम भाव में वृषभ या तुला राशि होती है तो जातक को चतुर, मृदुभाषी, सुंदर, सुशिक्षित, संस्कारवान, तीखे नाक-नक्श वाली, गौरवर्ण, संगीत, कला आदि में दक्ष, भावुक एवं चुंबकीय आकर्षण वाली, कामकला में प्रवीण पत्नी प्राप्त होती है।

यदि जातक की जन्मकुंडली में सप्तम भाव में मिथुन या कन्या राशि उपस्थित हो तो जातक को कोमलाङ्गी, आकर्षक व्यक्तित्व वाली, सौभाग्यशाली, मृदुभाषी, सत्य बोलने वाली, नीति एवं मर्यादाओं से युक्त बात करने वाली, श्रृंगारप्रिय, कठिन समय में पति का साथ देने वाली तथा सदैव मुस्कुराती रहने वाली पत्नी प्राप्त होती है। उन्हें वस्त्र एवं आभूषण बहुत प्रिय होते हैं।

जिस जातक के सप्तम भाव में कर्क राशि स्थित होती है, उसे अत्यंत सुंदर, भावुक, कल्पनाप्रिय, मधुरभाषी, लंबे कद वाली, छरहरी तथा तीखे नाक-नक्श वाली, सौभाग्यशाली तथा वस्त्र एवं आभूषणों से प्रेम करने वाली पत्नी प्राप्त होती है।

यदि किसी जातक की जन्मकुंडली के सप्तम भाव में कुंभ राशि स्थित हो तो ऐसे जातक की पत्नी गुणों से युक्त धार्मिक, आध्यात्मिक कार्यो में गहरी अभिरुचि रखने वाली एवं दूसरों की सेवा और सहयोग करने वाली होती है।

सप्तम भाव में धनु या मीन राशि होने पर जातक को धार्मिक, आध्यात्मिक एवं पुण्य के कार्यो में रुचि रखने वाली, सुंदर, न्याय एवं नीति से युक्त बातें करने वाली, वाक्पटु, पति के भाग्य में वृद्धि करने वाली, सत्य का आचरण करने वाली और शास्त्र एवं पुराणों का अध्ययन करने वाली पत्नी प्राप्त होती है।

▪️मांगलिक विचार
मंगल उष्ण प्रकृति का ग्रह है.इसे पाप ग्रह माना जाता है. विवाह और वैवाहिक जीवन में मंगल का अशुभ प्रभाव सबसे अधिक दिखाई देता है. मंगल दोष जिसे मंगली के नाम से जाना जाता है इसके कारण कई स्त्री और पुरूष आजीवन अविवाहित ही रह जाते हैं.इस दोष को गहराई से समझना आवश्यक है ताकि इसका भय दूर हो सके.
वैदिक ज्योतिष में मंगल को लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भाव में दोष पूर्ण माना जाता है.इन भावो में उपस्थित मंगल वैवाहिक जीवन के लिए अनिष्टकारक कहा गया है.जन्म कुण्डली में इन पांचों भावों में मंगल के साथ जितने क्रूर ग्रह बैठे हों मंगल उतना ही दोषपूर्ण होता है जैसे दो क्रूर होने पर दोगुना, चार हों तो चार चार गुणा.मंगल का पाप प्रभाव अलग अलग तरीके से पांचों भाव में दृष्टिगत होता है

जैसे: लग्न भाव में मंगल (Mangal in Ascendant ) लग्न भाव से व्यक्ति का शरीर, स्वास्थ्य, व्यक्तित्व का विचार किया जाता है.लग्न भाव में मंगल होने से व्यक्ति उग्र एवं क्रोधी होता है.यह मंगल हठी और आक्रमक भी बनाता है.इस भाव में उपस्थित मंगल की चतुर्थ दृष्टि सुख सुख स्थान पर होने से गृहस्थ सुख में कमी आती है.सप्तम दृष्टि जीवन साथी के स्थान पर होने से पति पत्नी में विरोधाभास एवं दूरी बनी रहती है.अष्टम भाव पर मंगल की पूर्ण दृष्टि जीवनसाथी के लिए संकट कारक होता है.
द्वितीय भाव में मंगल (Mangal in Second Bhava) भवदीपिका नामक ग्रंथ में द्वितीय भावस्थ मंगल को भी मंगली दोष से पीड़ित बताया गया है.यह भाव कुटुम्ब और धन का स्थान होता है.यह मंगल परिवार और सगे सम्बन्धियों से विरोध पैदा करता है.परिवार में तनाव के कारण पति पत्नी में दूरियां लाता है.इस भाव का मंगल पंचम भाव, अष्टम भाव एवं नवम भाव को देखता है.मंगल की इन भावों में दृष्टि से संतान पक्ष पर विपरीत प्रभाव होता है.भाग्य का फल मंदा होता है.

चतुर्थ भाव में मंगल (Mangal in Fourth Bhava) चतुर्थ स्थान में बैठा मंगल सप्तम, दशम एवं एकादश भाव को देखता है.यह मंगल स्थायी सम्पत्ति देता है परंतु गृहस्थ जीवन को कष्टमय बना देता है.मंगल की दृष्टि जीवनसाथी के गृह में होने से वैचारिक मतभेद बना रहता है.मतभेद एवं आपसी प्रेम का अभाव होने के कारण जीवनसाथी के सुख में कमी लाता है.मंगली दोष के कारण पति पत्नी के बीच दूरियां बढ़ जाती है और दोष निवारण नहीं होने पर अलगाव भी हो सकता है.यह मंगल जीवनसाथी को संकट में नहीं डालता है.

सप्तम भाव में मंगल (Mangal in Seventh Bhava) सप्तम भाव जीवनसाथी का घर होता है.इस भाव में बैठा मंगल वैवाहिक जीवन के लिए सर्वाधिक दोषपूर्ण माना जाता है.इस भाव में मंगली दोष होने से जीवनसाथी के स्वास्थ्य में उतार चढ़ाव बना रहता है.जीवनसाथी उग्र एवं क्रोधी स्वभाव का होता है.यह मंगल लग्न स्थान, धन स्थान एवं कर्म स्थान पर पूर्ण दृष्टि डालता है.मंगल की दृष्टि के कारण आर्थिक संकट, व्यवसाय एवं रोजगार में हानि एवं दुर्घटना की संभावना बनती है.यह मंगल चारित्रिक दोष उत्पन्न करता है एवं विवाहेत्तर सम्बन्ध भी बनाता है.संतान के संदर्भ में भी यह कष्टकारी होता है.मंगल के अशुभ प्रभाव के कारण पति पत्नी में दूरियां बढ़ती है जिसके कारण रिश्ते बिखरने लगते हैं.जन्मांग में अगर मंगल इस भाव में मंगली दोष से पीड़ित है तो इसका उपचार कर लेना चाहिए.

अष्टम भाव में मंगल (Mangal in Eigth Bhava) अष्टम स्थान दुख, कष्ट, संकट एवं आयु का घर होता है.इस भाव में मंगल वैवाहिक जीवन के सुख को निगल लेता है.अष्टमस्थ मंगल मानसिक पीड़ा एवं कष्ट प्रदान करने वाला होता है.जीवनसाथी के सुख में बाधक होता है.धन भाव में इसकी दृष्टि होने से धन की हानि और आर्थिक कष्ट होता है.रोग के कारण दाम्पत्य सुख का अभाव होता है.ज्योतिष विधान के अनुसार इस भाव में बैठा अमंलकारी मंगल शुभ ग्रहों को भी शुभत्व देने से रोकता है.इस भाव में मंगल अगर वृष, कन्या अथवा मकर राशि का होता है तो इसकी अशुभता में कुछ कमी आती है.मकर राशि का मंगल होने से यह संतान सम्बन्धी कष्ट देता है।

द्वादश भाव में मंगल (Mangal in Twelth Bhava) कुण्डली का द्वादश भाव शैय्या सुख, भोग, निद्रा, यात्रा और व्यय का स्थान होता है.इस भाव में मंगल की उपस्थिति से मंगली दोष लगता है.इस दोष के कारण पति पत्नी के सम्बन्ध में प्रेम व सामंजस्य का अभाव होता है.धन की कमी के कारण पारिवारिक जीवन में परेशानियां आती हैं.व्यक्ति में काम की भावना प्रबल रहती है.अगर ग्रहों का शुभ प्रभाव नहीं हो तो व्यक्ति में चारित्रिक दोष भी हो सकता है..

भावावेश में आकर जीवनसाथी को नुकसान भी पहुंचा सकते हैं.इनमें गुप्त रोग व रक्त सम्बन्धी दोष की भी संभावना रहती है.

▪️प्रेम विवाह के योग
जब दो कुंडली के मिलान में ग्रहों का माकूल साथ हो तो प्रेम भी होगा और प्रेम विवाह भी। ज्योतिष की मानें तो चंद्र और शुक्र का साथ किसी भी व्यक्ति को प्रेमी बना सकता है और यही ग्रह अगर विवाह के घर से संबंध रखते हों तो इस प्रेम की परिणति विवाह के रूप में तय है। ऐसा नहीं कि प्रारब्ध को मानने से कर्म की महत्ता कम हो जाती है लेकिन इतना तय है कि ग्रहों का संयोग आपके जीवन में विरह और मिलन का योग रचता है। किसी भी व्यक्ति के प्रेम करने के पीछे ज्योतिषीय कारण भी होते हैं। कुंडली में शुक्र और चंद्र की प्रबलता है तो किसी भी जातक का प्रेम में पड़ना स्वाभाविक है। कुंडली में पाँचवाँ घर प्रेम का होता है और सातवाँ घर दाम्पत्य का माना जाता है। लग्न, पंचम, सप्तम या एकादश भाव में शुक्र का संबंध होने से प्रेम होता है। जब पाँचवें और सातवें घर में संबंध बनता है तो प्रेम विवाह में तब्दील हो जाता है।शुक्र या चंद्र के अलावा वृषभ, तुला और कर्क राशि के जातक भी प्रेम करते हैं। शुक्र और चंद्र प्रेम विवाह करवाते हैं तो सूर्य की मौजूदगी संबंधों में विच्छेद का कारण भी बनती है। सूर्य और शुक्र या शनि का आपसी संबंध जोड़े को अलग करने में मुख्य भूमिका निभाता है। सप्तम भाव का संबंध यदि सूर्य से हो जाए तो भी युवा प्रेमी युगल का नाता लंबे समय तक नहीं चलता। इनकी युति तलाक तक ले जाती है। अब आँखें चार हों तो कुंडली देख लें, संभव है शुक्र और चंद्र का साथ आपको प्रेमी बना रहा हो।

*👉 यज्ञ कुंड के प्रकार :-

यज्ञ कुंड मुख्यत: आठ प्रकार के होते हैं और सभी  का प्रयोजन अलग अलग होताहैं ।
1. योनी कुंड – योग्य पुत्र प्राप्ति हेतु ।
2. अर्ध चंद्राकार कुंड – परिवार मे सुख शांति हेतु । पर पतिपत्नी दोनों को एक साथ आहुति देना पड़ती हैं ।
3. त्रिकोण कुंड – शत्रुओं पर पूर्ण विजय हेतु ।
4. वृत्त कुंड - जन कल्याण और देश मे शांति हेतु ।
5. सम अष्टास्त्र कुंड – रोग निवारण हेतु ।
6. सम षडास्त्र कुंड – शत्रुओ मे लड़ाई झगडे करवाने हेतु ।
7. चतुष् कोणा स्त्र कुंड – सर्व कार्य की सिद्धि हेतु ।
8. पदम कुंड – तीव्रतम प्रयोग और मारण प्रयोगों से बचने हेतु ।
तो आप समझ ही गए होंगे की सामान्यतः हमें
चतुर्वर्ग के आकार के
इस कुंड का ही प्रयोग करना हैं । ध्यान रखने योग्य बाते :- अबतक आपने शास्त्रीय बाते समझने का
प्रयास किया यह बहुत जरुरी हैं । क्योंकि इसके बिना सरल बाते पर आप गंभीरता से विचार नही कर सकते । सरल विधान का यह मतलब कदापि नही की आप गंभीर बातों को ह्र्द्यगम ना करें ।
पर जप के बाद कितना और कैसे हवन किया जाता हैं ? कितने लोग और किस प्रकार के लोग की
आप सहायता ले सकते हैं ? कितना हवन किया जाना हैं ? हवन करते समय किन किन बातों का ध्यान रखना हैं ? क्या कोई और सरल उपाय भी जिसमे हवन ही न करना पड़े ? किस दिशा की ओर मुंह करके बैठना हैं ? किस प्रकार की अग्नि का आह्वान करना हैं ? किस प्रकार की हवन
सामग्री का उपयोग करना हैं ? दीपक कैसे और किस चीज का लगाना हैं ? कुछ ओर आवश्यक सावधानी ? आदि बातों के साथ अब कुछ बेहद सरल बाते को अब हम देखेगे । जब शाष्त्रीय
गूढता युक्त तथ्य हमने समंझ लिए हैं तो अब सरल बातों और किस तरह से करना हैं पर भी
कुछ विषद चर्चा की आवश्यकता हैं ।

1. कितना हवन किया जाए ?
शास्त्रीय नियम
तो दसवे हिस्सा का हैं ।
इसका सीधा मतलब की एक अनुष्ठान मे
1,25,000 जप या 1250 माला मंत्र जप अनिवार्य हैं और इसका दशवा हिस्सा होगा 1250/10 =
125 माला हवन मतलब लगभग 12,500 आहुति । (यदि एक माला मे 108 की जगह सिर्फ100  गिनती ही माने तो) और एक आहुति मे मानलो 15 second लगे तब कुल 12,500 *
15 = 187500 second मतलब 3125 minute मतलब 52 घंटे लगभग। तो किसी एक व्यक्ति
के लिए इतनी देर आहुति दे पाना क्या संभव हैं ?
2. तो क्या अन्य
व्यक्ति की सहायता ली जा सकती हैं? तो इसका
उतर
हैं हाँ । पर वह सभी शक्ति मंत्रो से दीक्षित हो या अपने ही गुरु भाई बहिन हो तो अति उत्तम हैं । जब यह भी न संभव हो तो गुरुदेव के श्री चरणों मे अपनी असमर्थता व्यक्त कर मन ही मन
उनसे आशीर्वाद लेकर घर के सदस्यों की सहायता ले सकते हैं ।
3. तो क्या कोई और उपाय नही हैं ? यदि दसवां हिस्सा संभव न हो तो शतांश हिस्सा भी हवन
किया जा सकता हैं । मतलब 1250/100 = 12.5 माला मतलब लगभग 1250 आहुति = लगने वाला समय = 5/6 घंटे ।यह एक साधक के लिए
संभव हैं ।
4. पर यह भी हवन भी यदि संभव ना हो तो ? कतिपय साधक किराए के मकान में या फ्लैट में रहते हैं वहां आहुति देना भी संभव नही है तब क्या ? गुरुदेव जी ने यह भी विधान सामने रखा की साधक यदि कुल जप संख्या का एक चौथाई हिस्सा जप और कर देता है संकल्प ले कर की मैं दसवा हिस्सा हवन नही कर पा रहा हूँ । इसलिए यह मंत्र जप कर रहा हूँ तो यह भी संभव हैं । पर इस केस में शतांश जप नही चलेगा इस बात का ध्यान रखे ।
5. स्रुक स्रुव :- ये आहुति डालने के काम मे आते हैं । स्रुक 36 अंगुल लंबा और स्रुव 24 अंगुल लंबा होना चाहिए । इसका मुंह आठ अंगुल और कंठ एक अंगुल का होना चाहिए । ये दोनों स्वर्ण रजत पीपल आमपलाश की लकड़ी के बनाये जा सकते हैं ।
6। हवन किस चीज का किया जाना चाहिये ?
· शांति कर्म मे पीपल के पत्ते, गिलोय, घी का ।
· पुष्टि क्रम में बेलपत्र चमेली के पुष्प घी ।
· स्त्री प्राप्ति के लिए कमल ।
· दरिद्र्यता दूर करने के लिये दही और घी का ।
· आकर्षण कार्यों में पलाश के पुष्प या सेंधा नमक से ।
· वशीकरण मे चमेली के फूल से ।
· उच्चाटन मे कपास के बीज से ।
· मारण कार्य में धतूरे के बीज से हवन किया जाना चाहिए ।
7. दिशा क्या होना चाहिए ? साधरण रूप से
जो हवन कर रहे हैं वह कुंड के पश्चिम मे बैठे और उनका मुंह पूर्व
दिशा की ओर होना चाहिये । यह भी विशद व्याख्या चाहता है । यदि षट्कर्म किये
जा रहे हो तो ;
· शांती और पुष्टि कर्म में पूर्व दिशा की ओर हवन कर्ता का मुंह रहे ।
· आकर्षण मे उत्तर की ओर हवन कर्ता का मुंह रहे और यज्ञ कुंड वायु कोण में हो ।
· विद्वेषण मे नैऋत्य दिशा की ओर मुंह रहे यज्ञ कुंड वायु कोण में रहे ।
· उच्चाटन मे अग्नि कोण में मुंह रहे यज्ञ कुंड वायु कोण मे रहे ।
· मारण कार्यों में - दक्षिण दिशा में मुंह और दक्षिण दिशा में हवन कुंड हो ।
8. किस प्रकार के हवन कुंड का उपयोग किया जाना चाहिए ?
· शांति कार्यों मे स्वर्ण, रजत या ताबे का हवन कुंड होना चाहिए ।
· अभिचार कार्यों मे लोहे का हवन कुंड होना चाहिए।
· उच्चाटन मे मिटटी का हवन कुंड ।
· मोहन् कार्यों मे पीतल का हवन कुंड ।
· और ताबे के हवन कुंड में प्रत्येक कार्य में उपयोग किया जा सकता है ।
9. किस नाम की अग्नि का आवाहन किया जाना चाहिए ?
· शांति कार्यों मे वरदा नाम की अग्नि का आवाहन किया जाना चहिये ।
· पुर्णाहुति मे शतमंगल नाम की ।
· पुष्टि कार्योंमे बलद नाम की अग्नि का ।
· अभिचार कार्योंमे क्रोध नाम की अग्नि का ।
· वशीकरण मे कामद नाम की अग्नि का आहवान किया जाना चहिये
: 10. कुछ ध्यान योग बाते :-
· नीम या बबुल की लकड़ी का प्रयोग ना करें ।
· यदि शमशान मे हवन कर रहे हैं तो उसकी कोई भी चीजे अपने घर मे न लाये ।
· दीपक को बाजोट पर पहले से बनाये हुए चन्दन के त्रिकोण पर ही रखे ।
· दीपक मे या तो गाय के घी का या तिल का तेल का प्रयोग करें ।
· घी का दीपक देवता के दक्षिण भाग में और तिल का तेल का दीपक देवता के बाए ओर लगाया जाना चाहिए ।
· शुद्ध भारतीय वस्त्र पहिन कर हवन करें ।
· यज्ञ कुंड के ईशान कोण मे कलश की स्थापना करें ।
· कलश के चारो ओर स्वास्तिक का चित्र अंकित करें ।
· हवन कुंड को सजाया हुआ होना चाहिए ।
अभी उच्चस्तरीय इस विज्ञानं के
अनेको तथ्यों को आपके सामने आना
बाकी हैं । जैसे की "यज्ञ कल्प सूत्र विधान"
क्या हैं । जिसके माध्यम से
आपकी हर प्रकार की इच्छा की पूर्ति केवल मात्र यज्ञ के
माध्यम से हो जाति हैं । पर यह यज्ञ कल्प
विधान हैं क्या ? यह और
भी अनेको उच्चस्तरीय तथ्य जो आपको विश्वास
ही नही होने देंगे की
यह भी संभव हैं । इस आहुति विज्ञानं के माध्यम
से आपके सामने
भविष्य मे आयंगे । अभी तो मेरा उदेश्य यह हैं
की इस विज्ञानं की
प्रारंभिक रूप रेखा से आप परिचित हो ।
तभी तो उच्चस्तर के ज्ञान की
आधार शिला रखी जा सकती हीं ।*
नागा साधुओं की ट्रेनिंग कमांडो से भी खतरनाक

हिन्दू संत धारा में नागा साधुओं का राष्ट्र और धर्म की रक्षा हेतु अहम योगदान रहा है। कालांतर में ये साधु योद्धा होते हैं। हालांकि आज युद्ध नहीं होते ऐसे में उक्त साधुओं की दिनचर्या में भी फर्क पड़ा है। समय के साथ सब कुछ बदलता रहता है, लेकिन एक बात है जो नहीं बदलती और वह यह कि नागा साधु बनने के लिए कड़ी प्रक्रिया से गुजरना होता है जो कि किसी सैनिक की ट्रेनिंग की तरह होती है। आओ जानते हैं नागा साधुओ के बारे में वह सबकुछ जो जाना जा सकता है मात्र दो पेज में।



1. अर्द्धकुंभ, महाकुंभ और सिंहस्थ के दौरान नागा साधु बनाए जाने की प्रक्रिया शुरू होती है। संत समाज के 13 अखाड़ों में से 7 अखाड़े ही नागा बनाते हैं। ये हैं- जूना, महानिर्वाणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आवाहन अखाड़ा।



2. नागा साधु बनने के लिए सर्वप्रथम ब्रह्मचर्य की दीक्षा दी जाती है। दीक्षा के बाद अखाड़े में शामिल होकर व्यक्ति 3 साल अपने गुरुओं की सेवा करता है। वहां उसे धर्म, दर्शन और कर्मकांड आदि को समझना होता है। इस परीक्षा को पास करने के बाद महापुरुष बनाने की दीक्षा प्रारंभ होती है।

3. कुंभ के दौरान उसे अगली प्रक्रिया में संन्यासी से महापुरुष बनाया जाता है जिसकी तैयारी किसी सेना में शामिल होने जैसी होती है। कुंभ में पहले उसका मुंडन करके नदी में 108 डुबकी लगवाई जाती है, इसके बाद वह अखाड़े के 5 संन्यासियों को अपना गुरु बनाता है।



4. महापुरुष बन जाने के बाद उन्हें अवधूत बनाए जाने की तैयारी शुरू होती है। अवधूत बनाने के लिए उस साधु का जनेऊ संस्कार करते हैं और उसके बाद उसे संन्यासी जीवन की शपथ दिलवाई जाती है। शपथ के बाद उसका पिंडदान करवाया जाता है। इसके बाद बारी आती है दंडी संस्कार की और फिर होता है पूरी रात 'ॐ नम: शिवाय' का जाप।



5. जाप करने के बाद भोर होते ही व्यक्ति को अखाड़े ले जाकर उससे विजया हवन करवाया जाता है और फिर गंगा में 108 डुबकियों का स्नान होता है। डुबकियां लगवाने के बाद अखाड़े के ध्वज के नीचे दंडी त्याग करवाया जाता है। इस संपूर्ण प्रक्रिया को 'बिजवान' कहा जाता है।



6. अंतिम परीक्षा दिगम्बर और फिर श्रीदिगम्बर की होती है। दिगम्बर नागा एक लंगोटी धारण कर सकता है, लेकिन श्रीदिगम्बर को बिना कपड़े के रहना होता है। श्रीदिगम्बर नागा की इन्द्री तोड़ दी जाती है।

7. नागा बन गए साधु को फिर वन, हिमालय, आश्रम और पहाड़ों में कठिन योग-साधना या तपस्या करना होती है। नागा बनने वाले साधुओं को भस्म, भगवा वस्त्र, चिमटा, धूनी, कमंडल और रुद्राक्ष की माला को धारण करना होता है।

दक्षिणा के बाद पोज़़ देते बाबा

8. ये नागा साधु हिमालय में शून्य से भी नीचे के तापमान में नग्न रहकर जीवित रह लेते हैं, लेकिन एक कमांडो ऐसा नहीं कर सकता। नागा साधु कितने ही दिनों तक भूखा रह सकता है। ठंड, गर्मी और वर्षा सभी मौसमों में उन्हें तपस्या के दौरान नग्न ही रहना होता है।



9. नागा साधु हमेशा भूमि पर सोते हैं। नागा साधु अखाड़े के आश्रम और मंदिरों में रहते हैं। कुछ तप के लिए हिमालय या ऊंचे पहाड़ों की गुफाओं में जीवन बिताते हैं। अखाड़े के आदेशानुसार ये पैदल भ्रमण भी करते हैं। इसी दौरान किसी गांव की मेड़ पर झोपड़ी बनाकर धुनी रमाते हैं। भ्रमण के दौरान भिक्षा मांगकर अपना पेट भरते हैं। दिन में एक ही समय भिक्षा के लिए मात्र 7 घरों में जाते हैं। यदि सातों घरों से कोई भिक्षा न मिले, तो उन्हें भूखा ही सोना होता है।



10. नागा साधुओं के पास खुद के हथियार जैसे तलवार, त्रिशूल और भाला रहते हैं जिन्हें उसे चलाने की शिक्षा मिलती है। जंगल में उनका सामना जंगली जानवरों से हो जाए तो वे बगैर हथियारों के भी लड़ाई लड़ना जानते हैं। मठों और मंदिरों की रक्षा के लिए नागा साधुओं ने कई कालांतरों में कई लड़ाइयां लड़ी हैं। पुराने समय में नागा साधुओं को अखाड़ों में एक योद्धा की तरह तैयार किया जाता था।



11. दीक्षा लेने के बाद नागा साधुओं को उनकी वरीयता के आधार पर पद भी दिए जाते हैं। कोतवाल, बड़ा कोतवाल, पुजारी, भंडारी, कोठारी, बड़ा कोठारी, महंत और सचिव उनके पद होते हैं। मूलत: नागा साधु के बाद महंत, श्रीमहंत, जमातिया महंत, थानापति महंत, पी महंत, दिगंबर श्री, महामंडलेश्वर और आचार्य महामंडलेश्वर नामक पद होते हैं।



12. चार आध्यात्मिक पद- 1. कुटीचक, 2. बहूदक, 3. हंस और सबसे बड़ा 4. परमहंस। नागाओं में परमहंस सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। नागाओं में शस्त्रधारी नागा अखाड़ों के रूप में संगठित हैं। इसके अलावा नागाओं में औघड़ी, अवधूत, महंत, कापालिक, श्मशानी आदि भी होते हैं।



13. प्रयाग के महाकुंभ में दीक्षा लेने वालों को नागा, उज्जैन में दीक्षा लेने वालों को खूनी नागा, हरिद्वार में दीक्षा लेने वालों को बर्फानी व नासिक में दीक्षा वालों को खिचड़िया नागा के नाम से जाना जाता है।

*🌹✍️पगला बाबा*नागा साधुओं की ट्रेनिंग कमांडो से भी खतरनाक