गुरुवार, 7 अप्रैल 2022

श्रीराम जन्म रहस्य

 II जय श्रीराघव II


“ श्रीरामजन्म रहस्य “

पोस्ट संख्या – ४/४ (अन्तिम)


कुछ महानुभवोंका मत है कि सांगोपांग शेषशायी भगवान् का आविर्भाव चार रूपोंमें होता है । साक्षात् भगवान् श्रीरामरूपमें और शेष, शंख, चक्र ये लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न रूपमें प्रकट होते हैं । आधे अंशमें राम और आधेमें लक्ष्मण प्रभृति तीनों भ्राता । दूसरे शब्दोंमें यह भी कहा जा सकता है कि सप्रपञ्च ब्रह्मका भरतादि तीन रूपमें प्राकट्य हुआ और निष्प्रपञ्च ब्रह्मका श्रीरामरूपमें आविर्भाव हुआ ।


प्रणवके ‘अ’ ‘उ’ ‘म्’ इन तीन मात्राओंके वाच्य विराट्, हिरण्यगर्भ, अव्याकृतका शत्रुघ्न, लक्ष्मण तथा भरतरूपमें आयर अर्द्धमात्राका अर्थ तुरीयपाद या वाच्यवाचकातीत, सर्वाधिष्ठान परम तत्त्वका श्रीरामरूपमें प्रादुर्भाव हुआ । निष्प्रपञ्च अर्द्धमात्राका अर्थ तुरीय तत्त्व ही चरुके अर्द्ध अंशसे और शेष तीन मात्राओंके अर्थ सप्रपञ्च तीनों तत्त्व चरुके अर्द्ध अंशसे व्यक्त हुए । प्रणवकी जैसे साढ़े तीन मात्रा मानी गयी है, वैसे ही सोलह मात्र भी मानी जाती है । ‘अकारो वै सर्वा वाक् ।‘ समस्त वाक्योंका अन्तर्भाव अकारमें ही होता । अतः प्रणवमें ही सोलह मात्राकी कल्पना करके उसके सोलह वाच्य स्थिर किये गये हैं । जाग्रत-अवस्थाका अभिमानी व्यष्टि विश्व और समष्टि स्थूल प्रपञ्चका अभिमानी विराट् होता है । सूक्ष्म प्रपञ्च और स्वप्नावस्थाका अभिमानी तैजस और हिरण्यगर्भ एवं कारण प्रपञ्च, सुषुप्ति-अवस्थाका अभिमानी प्राज्ञ और अव्याकृत होता है ।इन सभी कल्पनाओंका अधिष्ठान शुद्ध ब्रह्म तुरीय तत्त्व होता है ।


इस पक्षमें ‘तुरीय विराट्’ शत्रुघ्न, ‘तुरीय हिरण्यगर्भ’ लक्ष्मण, ‘तुरीय अव्याकृत’ भरत और ‘तुरीय तुरीय’ श्रीमद्राघवेन्द्र रामचन्द्ररूपमें प्रकट होते हैं, और उनकी माधुर्याधिष्ठात्री महाशक्ति, श्रीजनक-नन्दिनीरूपमें प्रकट होती हैं । सर्वथा पूर्णतम पुरुषोत्तम वेदान्तवेद्य भगवान् का ही श्रीरामचन्द्र-रूपमें प्राकट्य होता है तभी तो उनके दर्शन, स्पर्शन, श्रवण, अनुगमन मात्रसे प्राणियोंकी परमगति हो जाती है –

स यैः स्पृष्टोऽभिदृष्टो वा संविष्टोऽनुगतोऽपि वा ।

कोसलास्ते ययुः स्थानं यत्र गच्छन्ति योगिनः ।।

जो परम तत्त्व विषय, करण, देवताओं तथा जीवको भी सत्ता-स्फूर्ति प्रदान करनेवाला है, वही श्रीरामचन्द्ररूपमें प्रकट होता है ।


बिषय करन सुर जीव समेता । सकल एक तें एक सचेता ।।

सब कर परम प्रकासक जोई । राम अनादि अवधपति सोई ।।

समष्टि-व्यष्टि, स्थूल-सूक्ष्मकारण समस्त प्रपञ्चमय क्षेत्रके कूटस्थ निर्विकार भासक ही राम हैं – ‘ जगत प्रकास्य प्रकासक रामू ।‘

जिनके अनुग्रहसे एवं जिनमें सब रमण करते हैं और जो सर्वान्तरात्मा रूपसे सबमें रमण करते हैं वे ही मर्यादापुरुषोत्तम रामचन्द्र हैं । जिन आनन्दसिन्धु सुखराशिके एक तुषारसे अनन्त ब्रह्माण्ड आनन्दित होता है वे ही जीवोंके जीवन, प्राणोंके प्राण, आनन्दके भी आनन्द भगवान् ‘राम’ हैं ।

(गोताप्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित ‘कल्याण – श्रीरामभक्ति अंक’से)

******* सियावर रामचन्द्रकी जय *******

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें