शुक्रवार, 6 जून 2014

सता की राह में काँटे हैं,
खूबसूरत स्वप्न जो बाँटे हैं |

मोदीजी का इसमें गूढ़ निहितार्थ है,
वादों को जो करना चरितार्थ है |

सता सुख नहीं विषपान है,
हल्के में लिया तो नादान हैं |

मैं जो कहना था कह चुका,
कांग्रेस का अजेय गढ़ ढह चुका |

अब नया गढ़ने की जिम्मेदारी है,
हुए फेल तो सबका की बारी है |

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