ॐ🚩🚩#हिन्दू_कैलेंडर 卐🚩🚩
पिछली पोस्ट में विदेशी कैलेंडर पर चर्चा करी थी इसमें हिन्दू कैलेंडर की चर्चा करेंगे।
भारत में कालगणना का इतिहास -
भारतवर्ष में ग्रहीय गतियों का सूक्ष्म अध्ययन करने की परम्परा रही है तथा कालगणना पृथ्वी, चन्द्र, सूर्य की गति के आधार पर होती रही तथा चंद्र और सूर्य गति के अंतर को पाटने की भी व्यवस्था अधिक मास आदि द्वारा होती रही है। संक्षेप में काल की विभिन्न इकाइयां एवं उनके कारण निम्न प्रकार से बताये गये-
दिन अथवा वार- सात दिन- पृथ्वी अपनी धुरी पर 1674 कि.मी. प्रति घंटा की गति से घूमती है, इस चक्र को पूरा करने में उसे 24 घंटे का समय लगता है। इसमें 12 घंटे पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सामने रहता है उसे अह: तथा जो पीछे रहता है उसे रात्र कहा गया। इस प्रकार 12 घंटे पृथ्वी का पूर्वार्द्ध तथा 12 घंटे उत्तरार्द्ध सूर्य के सामने रहता है। इस प्रकार 1 अहोरात्र में 24 होरा होते हैं। ऐसा लगता है कि अंग्रेजी भाषा का hour शब्द ही होरा का अपभ्रंश रूप है।
#सौर_दिन-पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा 107200 कि.मी. प्रति घंटा की रफ्तार से कर रही है। पृथ्वी का 10 चलन सौर दिन कहलाता है।
#चन्द्र_दिन या तिथि- चन्द्र दिन को तिथि कहते हैं। जैसे एकम्, चतुर्थी, एकादशी, पूर्णिमा, अमावस्या आदि। पृथ्वी की परिक्रमा करते समय चन्द्र का 12 अंश तक चलन एक तिथि कहलाता है।
#सप्ताह- सारे विश्व में सप्ताह के दिन व क्रम भारत वर्ष में खोजे गए क्रम के अनुसार ही हैं। भारत में पृथ्वी से उत्तरोत्तर दूरी के आधार पर ग्रहों का क्रम निर्धारित किया गया, यथा- शनि, गुरु, मंगल, सूर्य, शुक्र, बुद्ध और चन्द्रमा। इनमें चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे पास है तो शनि सबसे दूर। इसमें एक-एक ग्रह दिन के 24 घंटों या होरा में एक-एक घंटे का अधिपति रहता है। अत: क्रम से सातों ग्रह एक-एक घंटे अधिपति, यह चक्र चलता रहता है और 24 घंटे पूरे होने पर अगले दिन के पहले घंटे का जो अधिपति ग्रह होगा, उसके नाम पर दिन का नाम रखा गया। सूर्य से सृष्टि हुई, अत: प्रथम दिन रविवार मानकर ऊपर क्रम से शेष वारों का नाम धरया गया।
#पक्ष_पृथ्वी की परिक्रमा में चन्द्रमा का 12 अंश चलना एक तिथि कहलाता है। अमावस्या को चन्द्रमा पृथ्वी तथा सूर्य के मध्य रहता है। इसे 0 (अंश) कहते हैं। यहां से 12 अंश चाल के जब चन्द्रमा सूर्य से 180 अंश अंतर पर आता है, तो उसे पूर्णिमा कहते हैं। इस प्रकार एकम् से पूर्णिमा वाला पक्ष शुक्ल पक्ष कहलाता है तथा एकम् से अमावस्या वाला पक्ष कृष्ण पक्ष कहलाता है।
#मास कालगणना के लिए आकाशस्थ 27 नक्षत्र माने गए (1) अश्विनी (2) भरणी (3) कृत्तिका (4) रोहिणी (5) मृगशिरा (6) आर्द्रा (7) पुनर्वसु (8) पुष्य (9) आश्लेषा (10) मघा (11) पूर्व फाल्गुन (12) उत्तर फाल्गुन (13) हस्त (14) चित्रा (15) स्वाति (16) विशाखा (17) अनुराधा (18) ज्येष्ठा (19) मूल (20) पूर्वाषाढ़ (21) उत्तराषाढ़ (22) श्रवणा (23) धनिष्ठा (24) शतभिषाक (25) पूर्व भाद्रपद (26) उत्तर भाद्रपद (27) रेवती।
27 नक्षत्रों में प्रत्येक के चार पाद किए गए। इस प्रकार कुल 108 पाद हुए। इनमें से नौ पाद की आकृति के अनुसार 12 राशियों के नाम धरे गए, जो निम्नलिखिताअनुसार हैं-
(1) मेष (2) वृष (3) मिथुन (4) कर्क (5) सिंह (6) कन्या (7) तुला (8) वृश्चिक (9) धनु (10) मकर (11) कुंभ (12) मीन। पृथ्वी पर इन राशियों की रेखा निश्चित की गई, जिसे क्रांति कहते है। ये क्रांतियां विषुव वृत्त रेखा से 24 उत्तर में तथा 24 दक्षिण में मानी जाती हैं। इस प्रकार सूर्य अपने परिभ्रमण में जिस राशि चक्र में आता है, उस क्रांति के नाम पर सौर मास है। यह साधारणत: वृद्धि तथा क्षय से रहित है।
#चन्द्र_मास- जो नक्षत्र मास भर सायंकाल से प्रात: काल तक दिखाई दे तथा जिसमें चन्द्रमा पूर्णता प्राप्त करे, उस नक्षत्र के नाम पर चान्द्र मासों के नाम पड़े हैं- (1) चित्रा (2) विशाखा (3) ज्येष्ठा (4) अषाढ़ा (5) श्रवण (6) भाद्रपद (7) अश्विनी (8) कृत्तिका (9) मृगशिरा (10) पुष्य (11) मघा (12) फाल्गुनी। अत: इसी आधार पर चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विनी, कृत्तिका, मार्गशीर्ष, पौष, माघ तथा फाल्गुन-ये चन्द्र मासों के नाम पड़े।
#उत्तरायण और #दक्षिणायन-पृथ्वी अपनी कक्षा पर 23 अंश उत्तर पश्चिमी में झुकी हुई है। अत: भूमध्य रेखा से 23 अंश उत्तर व दक्षिण में सूर्य की किरणें लम्बवत् पड़ती हैं। सूर्य किरणों का लम्बवत् पड़ना संक्रान्ति कहलाता है। इसमें 23 अंश उत्तर को कर्क रेखा कहा जाता है तथा दक्षिण को मकर रेखा कहा जाता है। भूमध्य रेखा को 00 अथवा विषुवत वृत्त रेखा कहते हैं। इसमें कर्क संक्रान्ति को उत्तरायण एवं मकर संक्रान्ति को दक्षिणायन कहते हैं।
#वर्षमान- पृथ्वी सूर्य के आस-पास लगभग एक लाख कि.मी. प्रति घंटे की गति से 166000000 कि.मी. लम्बे पथ का 365 दिन में एक चक्र पूरा करती है। इस काल को ही वर्ष माना गया।
भारतीयों की इस गणना को देखकर यूरोप के प्रसिद्ध ब्रह्माण्ड विज्ञानी कार्ल सेगन ने अपनी पुस्तक में कहा "विश्व में हिन्दू धर्म एकमात्र ऐसा धर्म है जो इस विश्वास पर समर्पित है कि इस ब्रह्माण्ड में उत्पत्ति और क्षय की एक सतत प्रक्रिया चल रही है और यही एक धर्म है, जिसने समय के सूक्ष्मतम से लेकर बृहत्तम माप, जो समान्य दिन-रात से लेकर 8 अरब 64 करोड़ वर्ष के ब्राहृ दिन रात तक की गणना की है, जो संयोग से आधुनिक खगोलीय मापों के निकट है। यह गणना पृथ्वी व सूर्य की उम्र से भी अधिक है तथा इनके पास और भी लम्बी गणना के माप है।" #कार्ल_सेगन ने इसे संयोग कहा है यह ठोस ग्रहीय गणना पर आधारित है।
भारतीय #सनातन_कालगणना आधुनिक कालगणना से कही सटीक है और वैज्ञानिक तौर पे पुष्टि भी की जा चुकि है यही एकमात्र ऐसी कालगणना है जिसमे समय की इतनी सटीक जानकारी है कि बिना फेरबदल किये निरंतर सटीक कालगणना की जा सके। और एक हम विदेशीयों के समय को मानते है जिनके सभी मानकों में त्रुटि है जिसके लिए उन्हें लीप सेकंड जोड़ना पड़ता है।
लीप सैंकेड़ 30 जून व 31दिसम्बर को जोड़ा जाव है अब तक जोड़े गए लीप सैंकेड़:-
वर्ष जून 30 को दिसम्बर 31को
1972 +1 +1
1973 0 +1
1974 0 +1
1975 0 +1
1976 0 +1
1977 0 +1
1978 0 +1
1979 0 +1
1980 0 0
1981 +1 0
1982 +1 0
1983 +1 0
1984 0 0
1985 +1 0
1986 0 0
1987 0 +1
1988 0 0
1989 0 +1
1990 0 +1
1991 0 0
1992 +1 0
1993 +1 0
1994 +1 0
1995 0 +1
1996 0 0
1997 +1 0
1998 0 +1
1999 0 0
2000 0 0
2001 0 0
2002 0 0
2003 0 0
2004 0 0
2005 0 +1
2006 0 0
2007 0 0
2008 0 +1
2009 0 0
2010 0 0
2011 0 0
2012 +1 0
2013 0 0
2014 0 0
2015 +1 0
2016 0 +1
2017 0 0
2018 0 0
2019 0 0
2020 0 0
अभी तक 27 लीप सैंकेड़ जोड़े गए है 10 लीप सैंकेड पहले ही थे। UTC घड़ी TAI का अन्तर 37 सैंकेड़ है।
श्रेय :- अपरिचित सनातनी
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