#योजन
#वैदिक_काल_की_हिन्दू_दूरी_मापन_की_इकाई
100 योजन से एक महायोजन बनता है।
चार गाव्यूति = एक योजन
१ योजन कितनी दूरी होती है, यह अलग-अलग भारतीय खगोलविदों ने अलग-अलग दिया है। सूर्य सिद्धान्त में १ योजन को ८ मील के बराबर लिया गया है। इसी तरह आर्यभटीय में भी १ योजन को ८ मील लिया गया है। किन्तु १४वीं शताब्दी के खगोलविद परमेश्वर ने १ योजन को १३ मील के बराबर लिया है।
▪️विष्णु पुराण के अनुसार मानव हस्त परिमाण इस प्रकार हैं:- (चित्र संलग्न है)
अंगुष्ठ से दूरी
तर्जनी तक=प्रदेश
मध्यमा तक=नाल
अनामिका तक=गोकर्ण
कनिष्ठिका तक= वितस्ति = 12 अंगुल
(वायु पुराण के अनुसार एक अंगुल, अंगुली की एक गांठ के बराबर है, और अन्य प्राधिकारियों के अनुसार सिरे पर अंगुष्ठ की मोटाई के बराबर है.)
▪️वायु ने मनु के अधिकार के अन्तर्गत उपरोक्त समान गणना दी है, जो कि मनु संहिता में नहीं उल्लेखित है:-
21 अंगुल= 1 रत्नि
24 अंगुल= 1 हस्त
2 रत्नि= 1 किश्कु
4 हस्त= 1 धनु
2000 धनु= 1 गाव्यूति
8000 धनुष= 1 योजन
1 अंगुल = 16 mm से 21 mm
4 अंगुल = एकधनु ग्रह = 62 mm से 83 mm;
8 अंगुल = एक धनु मुष्टि (अंगुष्ठ उठा के) = 125 mm से 167 mm ;
12 अंगुल = 1 वितस्ति (अंगुषठ के सिरे से पूरे हाथ को खोल कर कनिष्ठिका अंगुली के सिरे तक की दूरी) = 188 mm से 250 mm
2 वितस्ति = 1 अरत्नि (हस्त) = 375 mm से 500 mm
4 अरत्नि = 1 दण्ड = 1.5 से 2.0 m
2 दण्ड = 1 धनु = 3 से 4 m
5 धनु = 1 रज्जु = 15 m से 20 m
2 रज्जु = 1 परिदेश = 30 m से 40 m
100 परिदेश = 1 कोस (या गोरत) = 3 km से 4 km
4 कोस या कोश = 1 योजन = 13 km से 16 km
1,000 योजन = 1 महायोजन = 13,000 Km से 16,000 Km
▪️विष्णु पुराण :- भाग १, अध्याय षष्ठम के अनुसार
10 परमाणु= 1 परसूक्षम
10 परसूक्षम= 1 तृसरेणु
10 तृसरेणु= 1 धूलि कण या महिरजस
10 महिरजस= 1 बाल अग्र (बालाग्र)
10 बालाग्र= 1 लिख्या
10 लिख्या= 1 यूक
10 यूक= 1 यवोदर (जौ का बीज)
10 यवोदर= 1 जौ का दाना (औसत आकार)
10 जौ के दाने= 1 अंगुल या इंच
6 अंगुल= एक पद
2 पद= 1 वितस्ति
2 वितस्ति= 1 हस्त
4 हस्त= एक धनुष या दण्ड
2 धनुष/दण्ड= एक नाड़िका
2000 धनुष= एक गाव्यूति
4 गाव्यूति= एक योजन
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