#रामायणकालीन इंडोनेशिया का प्राचीन वैदिक मंदिर -
#देवी_अनुसूया_का_मंदिर
इस प्राचीन मंदिर का वर्तमान नाम #Pura_Besakih_Temple है । यह संस्कृत नाम है, जो #वैशाखपुर का अपभ्रंस है ।। #वैशाख का हिन्दीअर्थ होता है चांद या सोम की माता । सोम की माता अनुसूया को कहा गया है ।
#देवी_अनुसूया को केवल सोम की माता ही नही, बल्कि ब्रह्मा विष्णु की माता भी कहा गया है ।। इसी कारण यह मंदिर ब्रह्मा-विष्णु-महेश का मंदिर कहा जाता है, साथ ही इसे सभी मंदिरो की माता भी कहा जाता है ।।
#देवी_अनसूया प्रजापति #कर्दम और #देवहूति की 9 कन्याओं में से एक तथा #अत्रि मुनि की पत्नी थीं। अत्रि का अपभ्रंस वर्तमान में इटली की एक सभ्यता भी है ।। उनकी पति-भक्ति अर्थात सतीत्व का तेज इतना अधिक था के उसके कारण आकाशमार्ग से जाते देवों को उसके प्रताप का अनुभव होता था। इसी कारण उन्हें 'सती अनसूया' भी कहा जाता है। अनसूया ने राम, सीता और लक्ष्मण का अपने आश्रम में स्वागत किया था। उन्होंने सीता को उपदेश दिया था और उन्हें अखंड सौंदर्य की एक ओषधि भी दी थी। सतियों में उनकी गणना सबसे पहले होती है।
एक बार ब्रह्मा, विष्णु व महेश उनकी सतीत्व की परीक्षा करने की सोची, जो की अपने आप में एक रोचक कथा है।
पतिव्रता देवियों में अनसूया का स्थान सबसे ऊँचा है। उनके संबंध में बहुत सी लोकोत्तर कथाएँ शास्त्रों में सुनी जाती हैं। आश्रम में गये तो श्रीअनसूयाजी ने #सीताजी को पातिव्रतधर्म की विस्तारपूर्वक शिक्षा दी थी। उनके संबंध में एक बड़ी रोचक कथा है।
एक बार ब्रह्माणी, लक्ष्मी और गौरी में यह विवाद छिड़ा कि सर्वश्रेष्ठ पतिव्रता कौन है? अंत में तय यही हुआ कि अत्रि पत्नी श्रीअनसूया ही इस समय सर्वश्रेष्ठ पतिव्रता हैं। इस बात की परीक्षा लेने के लिये त्रिमूर्ती ब्रह्मा, विष्णु व शंकर ब्राह्मण के वेश में अत्रि-आश्रम पहुँचे। अत्रि ऋषि किसी कार्यवश बाहर गये हुए थे। अनसूया ने अतिथियों का बड़े आदर से स्वागत किया। तीनों ने अनसूयाजी से कहा कि हम तभी आपके हाथ से भीख लेंगे जब आप अपने सभी को अलग रखकर भिक्षा देंगी। सती बड़े धर्म-संकट में पड़ गयी। वह भगवान को स्मरण करके कहने लगी "यदि मैंने पति के समान कभी किसी दूसरे पुरुष को न देखा हो, यदि मैंने किसी भी देवता को पति के समान न माना हो, यदि मैं सदा मन, वचन और कर्म से पति की आराधना में ही लगी रही हूँ तो मेरे इस सतीत्व के प्रभाव से ये तीनों नवजात शिशु हो जाँय।" तीनों देव नन्हे बच्चे होकर श्रीअनसूयाजी की गोद में खेलने लगे।
संभव है जिस स्थान पर यह घटना हुई, यह वही मंदिर है । बर्फीले पहाड़ो का आध्यात्मिक महत्व ज़्यादा है, ओर यह मंदिर बर्फीली जगह के आसपास ही है ।।
श्रेय :- धीरेन्द्र भाई
दिनांक :- १९.०२.२०२१
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