मैंने उसका बुलाया,
वो नहीं आई।
मैं उसका इन्तजार करता रहा,
मगर वो कहीं नजर में नहीं आई।
मैं उसकी याद में सपने बुनता रहा,
कभी शिव तो पार्वती को सिमरता रहा।
वो निष्ठुर फिर भी पास नहीं आई,
इन्तजार में रात ढलने को आई।
जब वो चुपके से आई,
मुझे चैन से सुला गई।
वो नहीं आई।
मैं उसका इन्तजार करता रहा,
मगर वो कहीं नजर में नहीं आई।
मैं उसकी याद में सपने बुनता रहा,
कभी शिव तो पार्वती को सिमरता रहा।
वो निष्ठुर फिर भी पास नहीं आई,
इन्तजार में रात ढलने को आई।
जब वो चुपके से आई,
मुझे चैन से सुला गई।