सोमवार, 30 मई 2011

नींदिया रानी

मैंने उसका बुलाया,
                                        वो नहीं आई।
मैं उसका इन्तजार करता रहा,
           मगर वो कहीं नजर में नहीं आई।
मैं उसकी याद में सपने बुनता रहा,
    कभी शिव तो पार्वती को सिमरता रहा।
वो निष्ठुर फिर भी पास नहीं आई,
             इन्तजार में रात ढलने को आई।
जब वो चुपके से आई,
                           मुझे चैन से सुला गई।

जोश अर जवानी

आज सिंझिया म्हें ग्यो बाजार।
घरआली बोली म्हाने ल्या दो अचार।।
साम्ही स्कूटर पर आवै ही एक जोड़ी अजरी।
सक्ल अर लीरां स्यूं लाग्ही बा नूंवी सजरी।।
स्कूटर आ ग्यो म्हारी वाईसिकल गै साम्ही।
मोट्यार झट स्यं मार बरेक बांन थाम्ही।।
छोरी रा होठ सूर्ख लाल, नखां पर पालिष नीलि।
झटक स्यं मोट्यार गै घाल्योडी बांथ होगी ढीलि।।
देख्यो दोवां री आंख्यां मां ढेर सारो प्यार।
सजनी री मुळकण अर मूंड पर हरख अपार।।
नूंव नवैला न गिरण रो कोई डर कोनी।
बांरी नजर कैवे जणा आ सड़क है घर कोनी।।
म्हें खुश हो र सोच्यो वाह नवदम्पति री के मस्ती ।
पण होश  मां सोच्यो मीनख जूण अति के सस्ती।।
फेरूं आपरै हिवड़े न समझायो -
मनवा आ है जोश  अर जवानी।
ईं बख्त है आं री फुरसत री कहाणी।।

तीजा गणगोर

धर कूचा धर मन्जला मा शोर है
आज तीजा गणगोर है
घर घर छोरिया
पूज ईसर गोरिया
सिर पर गोर उठाया
तिरावन ज लुगाया
चोकी बैठा मर्द पीय चिलम हुक्का
गोर आन्ती देख सिर दिया झुक्का
ओ ही तो है राजस्थानी सन्स्र्किति रो चमन
सार देश सू निरालो है अठ अमन
ई खातिर अठे देव आव रमन
         जय राजस्थानए जय राजस्थानीए जय सन्स्करिति

अपने बारे में सोचो

                                                           आत्ममंथन
आत्ममंथन का मतलब है ‘‘यदि तुम मेरे नहीं! कम से कम अपना तो बनके देखो‘‘

जब हम बस स्टैण्ड, रेलवे स्टेषन पर हाथ फैलाते अनाथ, अपाहिज ......................... !
किसी कोने में दुबके मेले-कुचैले, सर्दी से सिकुड़ते गरीब ......................................... !
                                                को देखकर मुंह फेरते हैं तो हमारे अंदर कोई मरता है।
जब निज स्वार्थ/मनोरंजन से पड़ौसी परेषान होता है ़...........................................!
जब लोक घर के आगे की सड़क को अपने घर के हिस्से में मिलाते है .......................!
                                                  को देखकर मन के अंदर छुपा अहं हुंकार मारता है।
जब दीन की मदद को हड़पने के लिए समर्थ दीन बन जाता है .................................!
गरीब के राषन को पाने के लिए झूठा प्रमाण-पत्र हासिल पाता है .............................!
                                              को देखकर मन के अंदर जैसे आसमां से तारे तोड़ता है।
जब भीड़ में शामिल हो बन अगुवा लगाते नारे वन्दे गो मातरम् ............................ !
उसी माता को दूकान की तरफ मुंह करने पर डण्डा मारने में आती नहीं शरम् ......... !
                                              को देखकर मन के अंदर जैसे राक्षस जागता है।