आत्ममंथन
आत्ममंथन का मतलब है ‘‘यदि तुम मेरे नहीं! कम से कम अपना तो बनके देखो‘‘
जब हम बस स्टैण्ड, रेलवे स्टेषन पर हाथ फैलाते अनाथ, अपाहिज ......................... !
किसी कोने में दुबके मेले-कुचैले, सर्दी से सिकुड़ते गरीब ......................................... !
को देखकर मुंह फेरते हैं तो हमारे अंदर कोई मरता है।
जब निज स्वार्थ/मनोरंजन से पड़ौसी परेषान होता है ़...........................................!
जब लोक घर के आगे की सड़क को अपने घर के हिस्से में मिलाते है .......................!
को देखकर मन के अंदर छुपा अहं हुंकार मारता है।
जब दीन की मदद को हड़पने के लिए समर्थ दीन बन जाता है .................................!
गरीब के राषन को पाने के लिए झूठा प्रमाण-पत्र हासिल पाता है .............................!
को देखकर मन के अंदर जैसे आसमां से तारे तोड़ता है।
जब भीड़ में शामिल हो बन अगुवा लगाते नारे वन्दे गो मातरम् ............................ !
उसी माता को दूकान की तरफ मुंह करने पर डण्डा मारने में आती नहीं शरम् ......... !
को देखकर मन के अंदर जैसे राक्षस जागता है।
आत्ममंथन का मतलब है ‘‘यदि तुम मेरे नहीं! कम से कम अपना तो बनके देखो‘‘
जब हम बस स्टैण्ड, रेलवे स्टेषन पर हाथ फैलाते अनाथ, अपाहिज ......................... !
किसी कोने में दुबके मेले-कुचैले, सर्दी से सिकुड़ते गरीब ......................................... !
को देखकर मुंह फेरते हैं तो हमारे अंदर कोई मरता है।
जब निज स्वार्थ/मनोरंजन से पड़ौसी परेषान होता है ़...........................................!
जब लोक घर के आगे की सड़क को अपने घर के हिस्से में मिलाते है .......................!
को देखकर मन के अंदर छुपा अहं हुंकार मारता है।
जब दीन की मदद को हड़पने के लिए समर्थ दीन बन जाता है .................................!
गरीब के राषन को पाने के लिए झूठा प्रमाण-पत्र हासिल पाता है .............................!
को देखकर मन के अंदर जैसे आसमां से तारे तोड़ता है।
जब भीड़ में शामिल हो बन अगुवा लगाते नारे वन्दे गो मातरम् ............................ !
उसी माता को दूकान की तरफ मुंह करने पर डण्डा मारने में आती नहीं शरम् ......... !
को देखकर मन के अंदर जैसे राक्षस जागता है।
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