रविवार, 3 मई 2020

महत्वकांक्षाओ का महाभारत

.         हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र जन्म से अंधे थे। इस कारण वह ज्येष्ठ पुत्र होते हुए भी राजा बनने योग्य नहीं थे। परन्तु राजा पाण्डु के स्वर्ण सिधारने के बाद राज्य का सिंहासन रिक्त नहीं रखा जा सकता था, इसलिए धृतराष्ट्र को पाण्डु का प्रतिनिधि राजा बनाया गया था। परन्तु एक बार राजसुख का स्वाद चख लेने वाले धृतराष्ट्र चाहते थे की उनके बाद हस्तिनापुर का राजा उनका पुत्र दुर्योधन बनें। इसी लालसा में उन्होने न्याय और अन्याय में तर्क करना छोड़ दिया, और अपने पुत्र के हर अन्याय को वह अनदेखा कर के पाण्डु पुत्रों से पग-पग पर अन्याय करते गए।
          दुर्योधन ने भी पांडवों के लिए अपने ह्रदय में घृणा ही पाल रखी थी। भीम को विष दे कर नदी में डुबोना, लाक्षाग्रह में आग लगाकर पाण्डु पुत्रों और कुंती को जिन्दा जला देने का षड़यंत्र, द्रौपदी चीर हरण, द्यूत क्रीडा में कपट कर के पांडवों को वनवास भेजना और ना जाने ऐसे कई षडयंत्र से उसने पांडवों का अनिष्ट करने की चेष्टा की थी।
          अंत में जब उन के पाप का घड़ा भर गया, तब धर्म युद्ध हुआ। और उस महायुद्ध में लालची धृतराष्ट्र के 100 पुत्र मृत्यु को प्राप्त हुए। अपनी लालसा की वेदी पर अपने समस्त पुत्रों की बलि चढ़ा देने वाले धृतराष्ट्र नें युद्ध समाप्ती के बाद भी भीमसेन को अपनी भूजाओं में जकड़ कर मार डालने का प्रयास किया था। लेकिन अंत में शर्मिंदा हो और हार स्वीकार किया।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें