समुद्र की बूंद भाप बनकर बादलों में चली जाती है,
पहाड़ों पर गिरकर नदी के संग बह जाती है |
परन्तु खेतों में खुशहाली कर जाती है ||
हिना की पत्ती पेड़ से गिरती है ,
गीली है, सूखकर कण-कण बिखरती है |
परन्तु हाथों में लाली कर जाती है ||
कपास सिमटकर बाती बनती है,
खुद को घी में डुबोकर तिल-तिल जलती है |
परन्तु जग में दीवाली कर जाती है ||
सर्दी धुंध सहकर पौधा अनाज बनता है,
चाकी में पिसकर, तवे पर जलकर रोटी बनता है |
परन्तु सजीवों का पेट भर कर संवरता है ||
पहाड़ों पर गिरकर नदी के संग बह जाती है |
परन्तु खेतों में खुशहाली कर जाती है ||
हिना की पत्ती पेड़ से गिरती है ,
गीली है, सूखकर कण-कण बिखरती है |
परन्तु हाथों में लाली कर जाती है ||
कपास सिमटकर बाती बनती है,
खुद को घी में डुबोकर तिल-तिल जलती है |
परन्तु जग में दीवाली कर जाती है ||
सर्दी धुंध सहकर पौधा अनाज बनता है,
चाकी में पिसकर, तवे पर जलकर रोटी बनता है |
परन्तु सजीवों का पेट भर कर संवरता है ||
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