मंगलवार, 26 जुलाई 2011

            कोई काँटा चुभा नहीं होता
दिल अगर फूल सा नहीं होता

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता...

o                                                        
गुफ़्तगू उन से रोज़ होती है
मुद्दतों सामना नहीं होता

जी बहुत चाहता सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता

रात का इंतज़ार कौन करे
आज कल दिन में क्या नहीं होता..

शनिवार, 23 जुलाई 2011

दाँव लगाते लोग

पूरा जीवन दाँव लगाते लोग
कब झोली से ज्यादा पाते लोग

राहों को मिल्कियत बताते हैं
चौराहे से आते जाते लोग

एक लहर सब ले जाती लेकिन
एक घरोंदा रोज बनाते लोग

चाहों को कितना चाहे चाहो
चाह नहीं मिटती मिट जाते लोग

वक़्त बिगड़ता है वक्तन वक्तन
वक़्त बिगड़ता वक़्त बनाते लोग

नाते-रिश्ते एक गहरा सागर
अपनी डोंगी पार लगाते लोग

एक संगीं सा राज बना जीना
राज बनाते राज छिपाते लोग

रिश्ते धीमी मौत मरा करते
चुपके चुपके शोक मानते लोग

दुनिया इक सतरंगी चादर है
कहीं ओढ़ते कहीं बिछाते लोग

गुरुवार, 7 जुलाई 2011

शिक्षा रो अधिकार।

सरकार ने अजब बणायो शिक्षा रो अधिकार।
टाबरियां न पढावण आला ग गल मां रस्सी दी डार।।

मास्टरां ने स्कूल छोड़ घर-घर जाणो होसी।
नीं पढण आला टाबरियां ने स्कूल ल्याणों होसी।।

मां बाप टाबर न स्कूल भेज या नहीं बा बांरी मरजी।
गुरूजी ने नौकरी बचावण खातर लगाणी होसी अरजी।।

रोल फिरता टाबरां री स्कूल आवण री आस कोनी।
स्कूल मां बैठ्या टाबरां ने पढावण रो प्रयास कोनी।।

विद्या गो मंदिर कुक गै हवाले हो सी।
गुरूजी गलियां गी खाक छाणता रो सी।।

खून से खून

           खून  से  खून

खून को प्यारा लगता है खून ।
हर रिष्ता बखूबी निभाता है खून ।।

मां बेटे का नाता है खून से ।
दादी पोता का रिष्ता है खून से ।।

सोलह संस्कार दिये जाते हें खून में ।
षादी से रिषता बनता है खून में ।।

रिष्तों को प्रेम से रंगती है कूंची ।
ऋषियों ने वर्ण व्यवस्था बनाई सोच थी ऊँची ।।

कलियुग का फेर है ।
रिष्ते हो रहे ढेर हैं ।।

जमीन ने भाई को भाई से मरवाया ।
जोरू ने पति से पत्नि का सिर कटवाया ।।

धन की खातिर दादी का पोते ने किया कत्ल ।
प्रेम की खातिर औलाद ने मां-बाप की धड़ से उतार दी षक्ल ।।

ईष्क की खातिर पत्नि ने पति का घर छोड़ा ।
औलाद को समझा बाधक, उसका गर्दन मरोड़ा ।।

मन पर सवार जब होता है इष्क का घोड़ा ।
वह पल होता है क्षण भंगुर, प्रेमरस उसमें थोड़ा ।।

बुढापा होता है बहुत कष्टकारी ।
औलाद को बुजुर्ग लगता है भारी ।।

इन्सान सोचता है बेटा अन्त समय में मेरी सेवा करेगा ।
जब जनक जर से होते हैं लाचार बेटा सोचता बूढा कब मरेगा।।

एक कुंआ कई तालाबों को भर देता है।
प्यासा कुंआ तालाबों को देख आह भर लेता है।।

यदि इन्सान समझे तो झगड़े की जड़ हैं तीन ।
तीनों के नाम हैं जर, जोरू और जमीन ।।

मोह माया में इन्सान है बे बस।
इसलिये खून में सूख गया है रस।।

खून में वो श्रद्धा और विष्वास कहाँ।
इस कारण मानव तड़प रहा यहाँ ।।

जीवता ही राखे खान्धिया!

घर में बड़ भेदी.
नित घात करे.
सींग-पूंछ री
ठा कोनी
ऊंची-ऊंची
बात करे.
पकड़ीजे
रंगे हाथा
जद ओला लेवे.
घिर ज्यावे
जद सवाला सू
कुतरका री आड लेवे.
बात बिगडती लागे
जद
खुद तैतीसा मनावे
गुंडा-बदमाशा- कुदसिया
ने मोरचो सम्भ्लावे.
अधकिचरे ग्यान
री गंगा मे
गोता खावे
तिरणो आवे कोनी
बिचाळे ही
लटक ज्यावे.
कलम रा कारीगर
रेया कोनी.
कुडा पळका मारे.
पळका रे झांसा मे
हरेक आखड ज्यावे.
उंच-नीच
सागे रळ
राग-बैराग गावे.
पुरो साच
जाणे कोनी
कूड़ी बठेठी
खावे.
मरया पछे
काम आवे
खान्धिया
ऐ जीवता ही
राखे
खान्धिया!

साभार विनोद सारस्वत