शनिवार, 23 जुलाई 2011

दाँव लगाते लोग

पूरा जीवन दाँव लगाते लोग
कब झोली से ज्यादा पाते लोग

राहों को मिल्कियत बताते हैं
चौराहे से आते जाते लोग

एक लहर सब ले जाती लेकिन
एक घरोंदा रोज बनाते लोग

चाहों को कितना चाहे चाहो
चाह नहीं मिटती मिट जाते लोग

वक़्त बिगड़ता है वक्तन वक्तन
वक़्त बिगड़ता वक़्त बनाते लोग

नाते-रिश्ते एक गहरा सागर
अपनी डोंगी पार लगाते लोग

एक संगीं सा राज बना जीना
राज बनाते राज छिपाते लोग

रिश्ते धीमी मौत मरा करते
चुपके चुपके शोक मानते लोग

दुनिया इक सतरंगी चादर है
कहीं ओढ़ते कहीं बिछाते लोग

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