सोमवार, 12 दिसंबर 2011

मैंने उसको बुलाया
वो  चली आई
सांवली, दुबली, शर्मीली सी
काले घने बालों की जुल्फ लहराती
नाज नखरे मटकाती, चाल बलखाती
साड़ी के आंचल में छुपती छुपाती
दांतों तले उंगली दबाती, नख चबाती
भोली भाली सी उसकी सूरत
मासूमियत की है  वो मूरत
चेहरे पे ख़ामोशी का नूर है
लगा स्वर्ग का कोई हूर है
उसे देखकर देवता भी शर्माते जरुर है
वो नन्ही सी परी मुझे उस पर गरूर है

गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

पहाड़ नदियों का पथ नहीं रोक सकता |
आंधियां दीपक को नहीं बुझा सकती |
तूफानी लहरें नाविकों को डरा नहीं सकती |
कड़कती बिजलियाँ धरा को ध्वस्त नहीं कर सकती |
मुसीबते आगे बढ़ने वालों को रोक नही सकती ||
सुमन तेरी राहों में हों, शोले  तुम से दूर हों |
खुशियों की सौगात  मिले तुमको, मुसीबते काफूर हों |
उदासी रहे दूर सदा, मुखड़ा हो जैसे चंदा |
हर प्रार्थना तेरी मंजूर हो, चेहरे पे लाली मुख में खजूर हों |
खुशियाँ ले लो , खुशियाँ दे दो |
खुशियों की लडियाँ भरपूर हों |

सोमवार, 5 दिसंबर 2011

जहाँ हर सिर झुकता है , वही मंदिर है |
जहाँ हर नदी समाती है , वही समंदर है |
जीवन की कर्मभूमि में , युद्ध बहुत हैं |
जो हर जंग जीतता है, वही सिकंदर है |

रविवार, 4 दिसंबर 2011

सूर्य की रश्मि बनकर जग रोशन करना है,
पुष्प की सुगंध बनकर खुसबू को चमन में भरना है |
दीपक की बाती बनकर तम को हरना है,
सितारों की चमक बनकर आकाश को निखरना है |
जलद की फुहार बनकर तपती धरा को शीतल करना है,
चाँद की चांदनी बनकर आंचल धरती का भरना है |
वटवृक्ष बनकर घनी धूप में छाँव करना है ||
काँटों से घिर कर भी गुलाब की तरह महकाना सीखो,
पंक में रहकर भी नीरज की तरह खिलना सीखो |
परिस्थितियों से घबराने वाला मानव लोह्पुरुष नहीं होता,
राख में रहकर भी अंगारे की तरह दहकना सीखो ||
जीवन चार दिनों का मेला है,
क्यों पल पल रोना है |
हर दिल में खुशियाँ भर,
कर दो हर सपन सलोना ||

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

वजूद अपना - अपना

ये दुनिया खुदगर्जी का मेला है,
हर इंसान भीड़ में अकेला है|
वजूद अपना ढूंढता है हर कोई,
वजूद का सफर गरूर से है होई||

गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

ये दुनिया खुदगर्जी का मेला है,
हर इंसान भीड़ में अकेला है
वजूद अपना