रविवार, 4 दिसंबर 2011

सूर्य की रश्मि बनकर जग रोशन करना है,
पुष्प की सुगंध बनकर खुसबू को चमन में भरना है |
दीपक की बाती बनकर तम को हरना है,
सितारों की चमक बनकर आकाश को निखरना है |
जलद की फुहार बनकर तपती धरा को शीतल करना है,
चाँद की चांदनी बनकर आंचल धरती का भरना है |
वटवृक्ष बनकर घनी धूप में छाँव करना है ||

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