सोमवार, 12 दिसंबर 2011

मैंने उसको बुलाया
वो  चली आई
सांवली, दुबली, शर्मीली सी
काले घने बालों की जुल्फ लहराती
नाज नखरे मटकाती, चाल बलखाती
साड़ी के आंचल में छुपती छुपाती
दांतों तले उंगली दबाती, नख चबाती
भोली भाली सी उसकी सूरत
मासूमियत की है  वो मूरत
चेहरे पे ख़ामोशी का नूर है
लगा स्वर्ग का कोई हूर है
उसे देखकर देवता भी शर्माते जरुर है
वो नन्ही सी परी मुझे उस पर गरूर है

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